दो अजनबी

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अनजाने से इक मोड़ पर दो अजनबी मिले
न थे संगी न थे साथी, फिर भी संग चले.

बंधन कैसा बांधे उनको, क्या है कोई नाता पुराना,
जोड़े कौन सा धागा उनको, न कोई समझा, न कोई जाना.

बेनाम है रिश्ता उनका, मीठा सा एहसास है.
अमिट फ़ासले है  फिर भी, लगे आस-पास है.

शब्दों की नहीं उन्हें जरुरत, प्रीत की आहट सुन लेते.
मन की अपनी भाषा है, बिन कहें-सुने पढ़ लेते.

सपनों सी सुन्दर उनकी दुनिया, हँसते-गाते सुख वो बांटे.
फूलों से महके दिन औ रात, चुभन न देते दुःख के काँटे.

राहें उनकी जुदा है लेकिन, फिर भी दो दिल मिले.
जन्मों के नाते जुड़ जाते, जब चले प्रीत के सिलसिले.
-विनिता सुराना 'किरण'


Comments

bahot achchha !! aisa laga ki yah baat hamare sabhi ki hai ! Yah to sach hi hai k koi to aisi shakti hai jisne hame itne door hone k bavjud itne kareeb laya hai.! Respecting U !
Vinita Kiran said…
sahi kaha aapne Mehul ji !! hum life mein kab kis se milte hai ye humare nahi destiny ke haath mein hain. :)

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