आईना
एक दिन आईने ने
कुछ यूँ सवाल किया मुझसे
क्यूँ प्यार
तुम्हें बेशुमार है खुद से?
मैंने कहा,
”इसमें दोष मेरा नहीं, तुम्हारा हैं.
तुम्हीं ने तो
मेरे अक्स को सर्वप्रथम मिलवाया था मुझसे.
तुम्हीं पहली बार
मुझे देखकर मुस्कराएँ थे,
देखकर खुद को
तुम्हारी आँखों में, हम शर्माए थे.
कह देते उसी दिन
कि तुम झूठे हो,
जब तुम्हीं हम पर
नज़रें लगाए थे.
ख़ुद से प्यार
करना तुम्हीं ने सिखाया
आँखों में हसीं
ख्वाब सा तुम्हीं ने सजाया
अब ये सवाल करके
क्यूँ सताते हो?
जब खुद पर गुमान
करना तुम्हीं ने सिखाया.”
-विनिता सुराना ‘किरण’
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