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Showing posts with the label सुन_रहे_हो_न_तुम

हमारी यादों की गुल्लक

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वक़्त गुज़रता गया, कभी नहीं रुका, तब भी नहीं जब हम अलग हो रहे थे, तब भी नहीं जब तुझे आख़िरी बार गले लगा कर , बिना पीछे मुड़े मैं आगे बढ़ गयी थी, अगर पीछे मुड़ कर तेरी आँखों में देख लिया होता तो जा नहीं पाती न ! पर क्या वाकई हम अलग हो पाए, वो जो लम्हे अब भी कहीं ज़िंदा हैं, कुछ तेरी संजो कर रखी तस्वीरों में, कुछ हमारी याददाश्त में, वो लम्हे हमें जुदा कहाँ होने देते हैं? हम तो मौजूद हैं एक दूसरे की धड़कनों में, ये दूरियां, ये दुनिया, ये मजबूरियां कैसे अलग कर पाएंगी हमें ? जीते जी भी नहीं और उसके बाद भी नहीं क्योंकि हम फिर लौटेंगे पूरी करने को 'हमारी अधूरी कहानी' !               हाँ वही कहानी जिसकी शुरुआत कहीं हमारे तसव्वुर में न जाने कबसे थी, तेरे उस सुबह के ख़्वाब में, जब मैं लाल-पीली बॉर्डर वाली साड़ी में तुझे जगाने आती थी, तेरे न उठने पर तेरी उँगली को गरम चाय में डुबो देती थी और तू जाग कर मुझे खोजने लगता था अपने आस-पास ... मेरे ख़्वाब भी तो बेचैन किया करते थे मुझे जब उस पहचाने से स्पर्श को अपनी रूह तक महसूस किया करती थी, बिना ये जाने कि मैं कब म...

तेरे-मेरे ख़्वाब

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कभी-कभी लगता है मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई कि तुझे तेरे ख़्वाबों से मिलवाना चाहा, तेरी काबिलियत से तुझे रूबरू करवाया .. न ये ख़्वाब देखता न इसके टूटने का दर्द होता ! मुझसे अनजाने ही सही गुनाह हो गया, तुझे अनजाने ही सही दर्द दे बैठी, कभी न मिटने वाला दर्द जो वक़्त के साथ शायद अपने निशान तो मिटा देगा पर एक टीस तेरे मन के कौने में हमेशा चुभती रहेगी ..               तुझे यूँ खुद से अनजाना सा, अपनी ही खुशी से रूठा हुआ सा देखती हूँ तो बहुत रोता है मन, तेरी वो पुरानी खिलखिलाती तस्वीरें देख अनायास ही भीग जाती हैं आंखें, हाँ वही आंखें जो तेरे साथ तेरे ख़्वाब साझा देखा करती थीं !                 तेरी गुनाहगार हूँ मैं, क्या कभी मुक्ति मिलेगी मुझे इस बोझ से बाबू ? क्या कभी वो महकते ख़्वाब फिर देख पाऊंगी तेरी आँखों में झिलमिलाते हुए ? यकीन कर उस दिन मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कोई और नहीं होगा 💖 🎵🎶🎼 कबसे हैं आके रुके बादल इन आखों पे उस रोज़ रिहा होंगे जिस दिन तुम आओगे छा जाए ख़ामोशी दुनिया के सवालों पे सब दर्द ज़ुबां होंगे जिस...

वही सपना, आधा सा अधूरा सा

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मीरा की गोद में सर रखकर लेटे उसी की डायरी के पन्ने पलटते उसने पूछा , "क्या कभी हमारी कहानी लिखोगी ?"  "उहूँ , क्यों लिखना है उसे जो हम जी रहे, तुम जीते हो मेरे आखर-आखर में और ये सिर्फ हमारे हैं। कहानियां, किस्सों में तो वो जीया करते हैं जो साथ नहीं होते, हम तो हमेशा साथ रहेंगे न ?" मीरा ने अपनी आंखों में सारी चाहत लिए कहा "हाँ हमेशा साथ रहेंगे और एक दिन हम कुकी और धनु को हमारी कहानी सुनाएंगे.." उसने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा । "अब ये कुकी और धनु कौन हैं ? नए दोस्त हैं तुम्हारे ? मुझे बताया नहीं कभी, कब बने, कहाँ मिले?" "अरे मेरी झल्ली ज़रा विराम लो ! ये नए दोस्त नहीं हमारी बेटी और बेटा हैं, होने वाले ..." , मीरा की हथेली चूमते हुए वो हँस पड़ा  "धत्त ! ब्याह नहीं हुआ और तुमने बच्चों के नाम तक रख लिए, वो भी बिना मुझसे सलाह किये .." ज़ोर से हँस दी मीरा  आसमान से एक बूंद आकर गिरी मीरा के चेहरे पर और फिर फिसल कर सीधे उसकी गोद में लेटे उसके चेहरे पर ... झट से उँगली में लेकर होंठो से लगा लिया उस मीठी बूंद को उसने । "ह...

आन्या की डायरी

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आन्या उकेर रही थी अपने ख़्याल डायरी में .. ये किस मोड़ पर मिले हो तुम जब आदत हो चली थी तन्हाई की, ख़ुद से ख़ुद की रुसवाई की, चुपके से सरक आती  खामोशियों की, बेख़ौफ़ लिपटती  परछाईयों की.... फिर ये कैसी सरसराहट है मन के गलियारों में, जैसे दस्तक दी हो  फिर एक अहसास ने चुपके से ... जी चाहता है पुकार लूँ तुम्हें पर क्या तुम सुन पाओगे, मेरे ख़ामोश लफ़्ज़ ? अगर हाँ ... तो चले आओ न, जाने कबसे पुकारती हैं तुम्हें  मेरी खामोशियाँ, जाने कबसे इंतज़ार में हैं  मेरे साथ ये परछाइयाँ भी, जाने कितने लम्हे राह देखते हैं जो बिन जीये ही कट गए... अम्बर ने चुपके से पढ़ लिया और बेख़याली में खोई आन्या के कान में धीरे से फुसफुसाया.. "सुनो, ये हिसाब किताब फिर कर लेंगे इसमें उलझ कर मत भूल जाना  कि आज वादा है मुझसे मिलने का .. वहाँ जहाँ दूर तक बस ठंडी रेत का समंदर है तन्हाइयों का संगीत है चांदनी ने सजाया है हमारा आशियाँ और बादलों से लुकाछुपी खेलते तारे  कबसे जाग रहे हैं हमें शुभ रात्रि कहने के लिए ! बोलो आओगी न ?" 💖💖💖😍 #सुन_रहे_हो_न_तुम

फिर वही ख़्वाब, वही अधूरे जज़्बात

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गलियारे के दूसरे छोर पर बरामदे में लगे बड़े से झूले पर बहुत करीब मगर विपरीत दिशा में मुंह किये बैठे थे दोनों, उसका सिर उसके साथी के कंधे पर टिका हुआ और उसके घने बालों की लटें उसके चेहरे पर बिखरी हुई थीं। वो हौले-हौले उसके बालों को सहलाते कुछ कह रहा था कान में, जिसे सुन उसके लबों पर मुस्कान खिल उठी थी। धीरे-धीरे झूले के साथ लहरते वो दोनों एक दूसरे में खोए हुए थे कि तभी किसी ने पुकारा "मीरा..ओ मीरा!" वही जानी पहचानी आवाज़, शायद माँ ने पुकारा था और मीरा झट से उठ कर जाने को हुई थी अंदर, जहाँ से आवाज़ आयी थी, कि साथी ने बाँह थाम कर रोक लिया और उस पल दोनों के चेहरों में बस इंच भर की ही दूरी थी और साँसों की छुअन से धड़कनें बहुत तेज़ हो चुकी थी। एक पल को वक़्त शायद ठहर गया और इससे पहले कि वो पूरी तरह खो जाते उस लम्हे में, एक बार फिर किसी ने पुकारा था उसका नाम .. "बाबू , जाने दो न ..." "जल्दी आना.." "हम्म..."  वो बेमन से हाथ छुड़ा गलियारे से होते हुए बड़े कमरे की ओर दौड़ पड़ी थी। जानती थी उसके साथी की नजरें पीछा कर रही थीं उसका। उस अधूरे छूटे लम्हे की क...

हमारी बातें

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"घंटों तक बतिया कर भी हमारी बातें जैसे हमेशा अधूरी ही रह जाती हैं, कितना कुछ होता है कहने को पर तुम्हारे साथ का ये वक़्त कैसे फ़ुर्र हो जाता । शायद यही वजह है कि जब तुमसे गुड नाइट कहकर सोने जाता हूँ तो हमारी बातचीत मेरी नींद में भी अनवरत जारी ही रहती है और जब आँख खुलती है तो हैरानी से देखता हूँ मेरा फ़ोन तो मेरी पहुँच की ज़द में भी नहीं तो फिर मैं कैसे बतिया रहा था तुमसे ? फिर सारा दिन इन अधूरी बातों में जाने कितनी बातें और जोड़ता रहता हूँ तुमसे अगली मुलाक़ात तक ..."  तुम्हारी बात सुनकर मुस्कराने लगती हूँ मैं क्योंकि क्या बताऊँ तुम्हें कि बहुत सी और बातों की तरह ये भी तो समानता है हमारे बीच कि यही सब तो मेरे साथ होता है हर रात ... हमारी गुफ़्तगू सुबह आंख खुलने तक यूँ ही जारी रहती है ख़्वाब में जो हक़ीक़त से कम भी नहीं लगता । तुम्हें हर पल महसूस करना जैसे मेरी दिनचर्या में शुमार हो चुका है, जिसमें कभी भी कोई बदलाव नहीं हुआ । "हाँ तो क्यों होनी हैं पूरी, मैं तो चाहती हूँ यूँ ही तुम्हें सुनती रहूँ, देखती रहूँ तुम्हारे होंठों की हरकत, आंखों की चमक जिसमें घुल जाती है तुम्हा...

तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे !

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कभी नहीं समझ पायी कि बचपन से ही मुझे संगीत से लगाव क्यों है ... बस जैसे मेरी दिनचर्या में शामिल है संगीत ...तभी तो कुदरत की हर शय में सुनाई देता है संगीत !  जब भी कोई खूबसूरत गीत सुना रेडियो पर तो लगा या तो मैं गा रही हूं किसी के लिए या कोई मेरे लिए गा रहा है। कोई रूमानी गीत बजता तो सारा समां रुमानियत से सराबोर हो जाता, कोई विरह गीत बजता तो ख़ुद-ब-ख़ुद आंखें नम हो जातीं, कोई नृत्य गीत बजता तो कदम ख़ुद ही थिरकने लगते । अब जब सोचती हूँ तो लगता है कुछ भी बेवज़ह नहीं था, बस एक ज़रिया था 'तुम' को महसूस करने का अपने आस-पास। जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया, ये अहसास और भी मुखर होता गया कि कोई कहीं है जो मुझसे जुड़ा है, जो मेरे लिए है, मेरे जैसा है और मुझे पूरा करता है ।             अपने ही ख्यालों में डूबी मैं जब कभी वो गीत गुनगुनाती तो अक्सर मन वहाँ ले जाता, जहाँ कुदरत की गोद में लेटे मैं 'तुम्हारी' आंखों में कितने ही प्रेम पत्र पढ़ लेती और उनके जवाब भी लिख देती अपनी उंगलियों से ... हर स्पर्श एक अलग हर्फ़ उकेरता और तुम उतनी ही आसानी से पढ़ भी लेते, उसमें छुपे कितने ही एहसा...

वो अधूरा ख़्वाब

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"अरे ये अभी तक तैयार नहीं हुई वो लोग आने वाले होंगे, ज़रा जल्दी करो तुम लोग ..", हड़बड़ाहट में कोई महिला बोल कर उतनी ही तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गयी, जितनी तेज़ी से भीतर आयी थीं।         कौन है वो मेरी, जानी-पहचानी सी हैं फिर भी क्यों याद नहीं आ रहा ? मेरे आसपास शायद मेरी सहेलियां हैं या शायद मेरी ममेरी-चचेरी बहनें.. ओह मुझे क्यों नहीं याद इनके नाम ? बड़ा सा ये हवेली नुमा घर, बड़े-बड़े कमरे, गलियारे, बड़ी-बड़ी खिड़कियां और दूर तक फैली रेत ... ये कौन सी जगह है, किस शहर में हूँ मैं ? ये घर मेरा है, ये बड़ा सा कमरा भी ..सभी जाना पहचाना सा मगर फिर भी क्यों मैं ख़ुद को अजनबी सा महसूस कर रही हूं जैसे भटक गयी हूँ । तुम आने वाले हो, आज हमारी सगाई है, तुम्हें एक नज़र देखने को तरस गयी हूँ जैसे... कितना इंतज़ार करवाओगे, जल्दी से आ जाओ न ..        जाने क्यों लगता है तुम्हारे आ जाने से सब सही लगेगा, मेरी पहचान, मेरा घर, मेरे अपने ... तुम ही वो चाबी हो जो ये सारे सवालों के ताले खोल सकते हो । मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही है, हर गुज़रते पल के साथ, ये इंतज़ार क्यों खत्म नहीं होत...

हथेली में चांद

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जब प्यार धीरे से कहता है, " 'तुम' हो, यहीं कहीं हो !" एक जादू बुनता है चारों ओर  एक नई दुनिया जन्म लेती है  कहीं हमारे ही भीतर से, रोशनी और रंगों से सराबोर... ज़िन्दगी मुस्कुराती है गुनगुनाती है  और बन जाती है खूबसूरत ख़्वाब, एक इन्द्रिय आह्लाद ! शशश ... क्या सुन रहे हो हवा के परों पर  मंद-मंद थिरकती ये मीठी सी धुन ? जानती हूं तुम सुन सकते हो,  जैसे मैं सुन पा रही हूं.... मिलते हैं कदम बहकते हैं, थोड़ा लरज़ते हैं, थिरकते हैं प्रेम-धुन पर  और ज़िन्दगी हमेशा-हमेशा के लिए सिमट जाती है  बाहों के दरमियाँ ! ❤️ किरण

मीरा माधव (2)

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"कोई दो लोग इतने समान कैसे हो सकते ? पसंद, नापसंद, सोच, स्वभाव यहाँ तक कि ज़िन्दगी के अहम पड़ाव, हादसे और सफ़र भी ..." "जाने क्यों ऐसा लगता है कि हम एक दूसरे का इंतज़ार करते, एक दूसरे के सांचे में अनजाने ही ढलते गए और जब मिले तो कुछ अलग रहा ही नहीं पर फिर भी कुछ तो है जो हमें एक दूसरे की ओर खींचता है । क्योंकि समानताएं मिला तो सकती हैं पर आकर्षण हमेशा विपरीत से होता है .." "हाँ अलग भी तो हैं हम बहुत जैसे मुझे नींद में सुकून मिलता है तुम्हें रातों की आवारगी पसंद है, मुझे ज्यादा बातें नहीं पसंद और तुम चुप नहीं रहती.. मैं शर्म से कोसो दूर, तुम अब भी शर्मा कर शाम के रंग ओढ़ लेती हो पर जानता हूँ तुम्हें वो सब पसंद है जो मुझे बस कुछ वक़्त दो इश्क़ को, रंग लेगा तुम्हें भी अपने चटक रंगों में.. " "ओह ! अच्छा तो वो जो रातों को घंटों जाग कर मुझसे बतियाता रहा वो तुम्हारा भूत होगा ... सच तो ये है कि कुछ तुम में कम था , कुछ मुझमें, फिर हम मिले तो ढलने लगे एक दूसरे के अक्स में । कुछ तुम बदले, कुछ मैं .. सब अनजाने ही हुआ यहाँ तक कि हम खुद नहीं जान पाए किस तरह !...

साँझा कहानी

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जहाँ तक जाती है नज़र, ठहरती है जिस बीनाई* पर , वो साँझा है हमारी ! जिन ख़्वाबों को अक्सर ज़मीं दी है,  हमारे ख़यालों ने खुली आँखों में, वो साँझा हैं हमारे ! जो अहसास जीते हैं दिलों में, जिन्हें स्वर देती हैं धड़कनें, वो साँझा हैं हमारे ! जिन जज़्बातों से जुड़ता है मन, जिनमें बसर है जिंदगी की, वो साँझा हैं हमारे ! वो स्पर्श जिन्हें महसूस किया  जिस्म के पार अंतर्मन तक वो साँझा हैं हमारे ! कहाँ कुछ मुख़्तलिफ़** था, कि दो कहानियां लिख पाती क़लम, ये जो कहानी लिख रही हूं इन दिनों  वो साँझा है हमारी ! बिल्कुल वैसे ही जैसे तुम मेरे हो  और मैं तुम्हारी ! #सुन_रहे_हो_न_तुम *बीनाई - दृश्य , दृश्यावली  **मुख़्तलिफ़ - भिन्न, अलग

एक लम्हा भर ज़िन्दगी

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चंद क़दम ही सही, साथ चलो मेरे, आओ मनाते हैं उत्सव एक खूबसूरत शाम के आने का तुम्हारी हथेली में चांद  मेरी आंखों में सितारे उतर जाने का, फिर देखते ही देखते सारे रंग तुम्हारी मुस्कान में बिखर जाने का, और वो एक लम्हा मेरे कैमरे में क़ैद हो जाए ! "पर क्या ये काफी होगा जान ?  सदियों की तलाश और इंतज़ार का सिला, बस एक लम्हे का प्यार ! तो फिर एक लम्हा एक सदी हो जाये  तुम्हें देखूं, बुत हो जाऊं तुम्हें छू लूं, तुम्हीं में समा जाऊं .. याद रहे बस ये लम्हा  बाकी सब बिसरा आऊं .. एक पूरी ज़िंदगी एक लम्हे में गुज़र जाए, तब शायद काफी होगा 'तुम्हारा' वो एक 'लम्हा' ... है न ?" तुमने पूछा "शायद हाँ या शायद कुछ भी काफी नहीं तुम्हारे साथ...  असीमित हैं ख़्वाहिशें, अरमान, चाहतें ...  मगर हर ख़्वाहिश के साथ लगा होता है 'प्राइस टैग' !  सुनो, मुझे मंज़ूर है हर क़ीमत, जब तक तुम हमकदम हो मेरे ..."  मेरी आँखों में सैलाब था अहसासों का और उसमें उभरता तुम्हारा अक्स ! "एक दूसरे से किया हर वादा निभाएंगे हम, साथ है ये सदियों का, और जारी रहेगा सफ़र बिल्कुल वहीं से, जहाँ से एक मोड़ मु...

उनका होना

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                   उनके बीच शब्दों की जरूरत ही नहीं, तब भी वो अक्सर शब्दों में ढाला करते हैं एक दूसरे को..      उनके बीच अहसास सांस लेते हैं उन अनगिनत ख़तों में जिन्हें कभी भेजा नहीं जाता एक दूसरे को क्योंकि उनका अलग कोई पता ही नहीं ...        वो अक्सर एक ही गीत को अलग-अलग मगर एक ही समय में सुना करते हैं , गुनगुनाया करते हैं ये सोचते हुए कि क्या ये गीत कभी उसने भी सुना होगा , महसूस किया होगा ...       उन्होंने अलग-अलग काल में ऋषिकेश के एक ही घाट पर गंगा को हाज़िर नाज़िर कर घंटों एक दूसरे का इंतज़ार किया है... फिर छोड़ आये अपने मन का एक हिस्सा वही कहीं घाट की सीढ़ियों पर ...        कुछ कहने से पहले जब एक दूसरे की अधूरी बातें पूरी कर देते हैं तो खूब हँसते है और फिर भीग जाती हैं आंखें उस वक़्त के लिए जब यही अधूरी बातें बेचैन किया करती थीं उन्हें ...                  वो अक्सर सारी दूरियां मिटा कर मिलते हैं रातों की ख़ामोशि...

ये हाथ हम न छोड़ेंगे

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कैसे बताएँ तुम्हें, और किस तरह ये, कितना तुम्हें हम चाहते हैं? साया भी तेरा दिखे, तो पास जाके उसमें सिमट हम जाते हैं। रास्ता तुम्ही हो, रहनुमा तुम्ही हो, जिसकी ख़्वाहिश है हमको, वो पनाह तुम्हीं हो । तुम ही हो बेशुबा, तुम ही हो तुम ही हो मुझमें, हाँ, तुम ही हो 🎶🎵 तुमसे जो मिली हूँ, हर लफ़्ज़ के मायने बदल गए, हर अहसास अलहदा सा लगा, तुमसे जब भी इज़हार की तलब जागी, अल्फ़ाज़ मिले ही नहीं जो तुम्हारे लिए मेरे अहसास बयां कर पाते...  न जाने कितनी यादें अकेले बनाते आये हैं अब तलक और फिर भी हमेशा से साथ ही थे जैसे ... न तुमसे कुछ छुपा था मेरा, न मुझसे तुम्हारा, नहर के दो किनारों जैसे हाथ थामे जाने कबसे एक ही सफ़र में थे हम ...साझा थी हमारी उड़ान, साझा थी ख़्वाहिशें भी , साझा थे ख़्वाब सारे, साझा थी मंज़िलें भी ... "मुझे लगता है मैं सदियों से तुम्हारा हूँ, तुम मेरी हो .... तुम्हें मुझसे और मुझे तुमसे अलग करना मतलब पानी को पानी से अलग करना" " जानते हो हर रोज़ तुम्हें ख़त लिखा, कि शायद मेरे भीगे लफ़्ज़ों की नमी तुम्हें महसूस हो... तुमने ही मेरा परिचय सुरों से करवाया था, न जाने कितने न...

अब हमारी बारी है

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शब-ए-गुज़िश्ता में जो ख़्वाब बुने तेरे संग  उनकी कशिश सुब्ह तक तारी है तन्हाइयों ने समेटा है यादों का ज़खीरा वक़्त ने कसमसा कर इतना कहा, "जी लो जी भर के अब तुम्हारी बारी है ! #सुन_रहे_हो_न_तुम

सुबह

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धीरे-धीरे सुबह हुई,   जाग उठी ज़िन्दगी पंछी चले अम्बर को, माझी चले सागर को प्यार का नाम जीवन है मंज़िल है प्रीतम की गली .. ♪♫ “सुबह पहले कब इतनी खूबसूरत हुई याद नहीं ... रात की अनचाही जाग में अधपके ख़्वाबों की भटकती रूह ने कब खुल कर महकने और चहकने दिया सुबह को ?   पर जिस रात की सुबह तुम्हारी बाहों में हो, उस सुबह में चंचल गौरैया के मधुर गीतों का गुंजन भी होगा, मोहब्बत में भीगे तुम्हारे अलफ़ाज़ किसी प्रेम-गीत का आगाज़ करेंगे, मन जाने कितने आसमान लाँघ कर उन्मुक्त साँसें लेगा बिना किसी थकन के और प्रीत की ओस में भीगा फिर लौट आएगा तुम्हारे आगोश में ... तभी तो होगा शुभ प्रभात और एक खुशनुमा दिन का आगाज़ जिसे तुम्हारे साथ ही सफ़र करना है, एक सुकूँ भरी रात के आँचल में लौट जाने तक!” “मेरी सुबह तुम्हारी आँखों में चमकते इन गुलाबी डोरों से रंग लेती है, जिनमें हमारे ख़्वाबों की रंगत और ख़ुमारी है | तुम्हारी आँखों में देखकर तुमसे बातें करने का जी चाहता है| तुम्हारे इन बिखरे बालों को संवारते हुए तुम्हारी बकबक सुनने का जो मज़ा है वो तो किसी संगीत में भी नहीं | जब तक नहीं देखा थ...

मीरा-माधव

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जिस रास्ते पर तपता सूरज सारी रात नहीं ढलता इश्क़ की ऐसी रहगुज़र को हमने चुना है सीने में आवारापन बंजारापन .. एक हला है सीने में 🎼 “तुम्हारी आवाज़ बहुत मीठी है , बिल्कुल दिल से आती है” “तुम्हें पसंद आई तो जरूर होगी ...दिल से ही गाया है” “ये भी कोई पूछने की बात है, तुम्हारी हर चीज़, हर बात, हर अदा पसंद है मुझे” “जब उदास हो मन, तो बस यही गाना गुनगुनाया करती हूँ .... ऐसा लगता है उदासी की परछाइयों से निकलकर कोई अनजाना मगर पहचाना सा साया बाहों में भर लेता है मुझे और फिर मन शान्त और आँखें नींद के आगोश में सुकूँ से खो जाती हैं ...” “क्या अब भी उदास है मीरा ? अब तो माधव है न उसके साथ ?” “नहीं मीरा को उसका प्यार मिल गया, वो साथी मिल गया जो बस उसके ख़्यालों में जीया करता था ... दूर ही सही पर अहसास तो पास है” “आज दूर हैं पर कभी पास भी होंगे ... जिस दिन तुम पास होगी उस दिन लगेगा मानो सारे जहां की खुशियाँ मिल गयी हो मुझे” “नहीं हमें ... जानते हो ये पिछली तीन रातें बेहद खूबसूरत थीं ....हर लम्हा खूबसूरत था ...