सुबह
धीरे-धीरे सुबह हुई,
जाग उठी ज़िन्दगी
पंछी चले
अम्बर को,
माझी चले
सागर को
प्यार का नाम
जीवन है
मंज़िल है
प्रीतम की गली .. ♪♫
“सुबह पहले कब इतनी खूबसूरत हुई याद नहीं ... रात की अनचाही जाग में अधपके
ख़्वाबों की भटकती रूह ने कब खुल कर महकने और चहकने दिया सुबह को ? पर जिस रात की सुबह तुम्हारी बाहों में हो, उस
सुबह में चंचल गौरैया के मधुर गीतों का गुंजन भी होगा, मोहब्बत में भीगे तुम्हारे
अलफ़ाज़ किसी प्रेम-गीत का आगाज़ करेंगे, मन जाने कितने आसमान लाँघ कर उन्मुक्त
साँसें लेगा बिना किसी थकन के और प्रीत की ओस में भीगा फिर लौट आएगा तुम्हारे आगोश
में ... तभी तो होगा शुभ प्रभात और एक खुशनुमा दिन का आगाज़ जिसे तुम्हारे साथ ही
सफ़र करना है, एक सुकूँ भरी रात के आँचल में लौट जाने तक!”
“मेरी सुबह तुम्हारी आँखों में चमकते इन गुलाबी डोरों से रंग लेती है, जिनमें
हमारे ख़्वाबों की रंगत और ख़ुमारी है | तुम्हारी आँखों में देखकर तुमसे बातें करने
का जी चाहता है| तुम्हारे इन बिखरे बालों को संवारते हुए तुम्हारी बकबक सुनने का
जो मज़ा है वो तो किसी संगीत में भी नहीं | जब तक नहीं देखा था तुम्हें, अल्हड से
प्यार का खूबसूरत अहसास था पर अब तुम्हें देखने के बाद दिल में बेचैनी सी है समन्दर
में आये उफान की तरह , सहरा में भटकते उस प्यासे इंसान की तरह, जिसकी प्यास घड़े के
तल में बचे दो घूँट पानी से नहीं बुझती, उसे तो तलाश है उस मीठे पहाड़ी झरने की जो
तुम्हारे भीतर न जाने कबसे बहा करता है | दिल करता है तुम्हें खुद में समा लूँ या
फिर बह जाऊं तुम्हारे साथ ...”
“मुझे दोनों रास्ते बिना शर्त मंज़ूर हैं जान ... बस ये साथ न छूटे, तुम्हारा हाथ
न छूटे ...एक मुद्दत से इंतज़ार था उस साथी का जो इस बेचैन दिल को सुकूँ दे, मेरी आँखों
की नमी को राह दे, कहीं भीतर जब्त अहसासों को रिहाई दे, मेरे होंठों से गीत चुराकर
मुझे ही सुनाए, जैसे तुम सुनाया करते हो आजकल ...”
भीगी-भीगी सडकों पे मैं तेरा इंतज़ार करूँ
धीरे-धीरे दिल की ज़मीं को तेरे ही नाम करूँ
खुद को मैं यूँ खो दूँ कि फिर ना कभी पाऊं
हौले-हौले ज़िन्दगी को अब तेरे हवाले करूँ ♪♫
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