हमारी बातें
"घंटों तक बतिया कर भी हमारी बातें जैसे हमेशा अधूरी ही रह जाती हैं, कितना कुछ होता है कहने को पर तुम्हारे साथ का ये वक़्त कैसे फ़ुर्र हो जाता । शायद यही वजह है कि जब तुमसे गुड नाइट कहकर सोने जाता हूँ तो हमारी बातचीत मेरी नींद में भी अनवरत जारी ही रहती है और जब आँख खुलती है तो हैरानी से देखता हूँ मेरा फ़ोन तो मेरी पहुँच की ज़द में भी नहीं तो फिर मैं कैसे बतिया रहा था तुमसे ? फिर सारा दिन इन अधूरी बातों में जाने कितनी बातें और जोड़ता रहता हूँ तुमसे अगली मुलाक़ात तक ..."
तुम्हारी बात सुनकर मुस्कराने लगती हूँ मैं क्योंकि क्या बताऊँ तुम्हें कि बहुत सी और बातों की तरह ये भी तो समानता है हमारे बीच कि यही सब तो मेरे साथ होता है हर रात ... हमारी गुफ़्तगू सुबह आंख खुलने तक यूँ ही जारी रहती है ख़्वाब में जो हक़ीक़त से कम भी नहीं लगता । तुम्हें हर पल महसूस करना जैसे मेरी दिनचर्या में शुमार हो चुका है, जिसमें कभी भी कोई बदलाव नहीं हुआ ।
"हाँ तो क्यों होनी हैं पूरी, मैं तो चाहती हूँ यूँ ही तुम्हें सुनती रहूँ, देखती रहूँ तुम्हारे होंठों की हरकत, आंखों की चमक जिसमें घुल जाती है तुम्हारी उन्मुक्त हँसी... ये बातें हमारे अंतहीन सफ़र की साथी हैं, कही-अनकही हर वो बात जिसका एक सिरा तुम्हारे पास रहा है और दूसरा मेरे। हमारे बीच तो चुप्पियां भी बोलती हैं !"
तुमने कहा,
तुम्हारे शब्द हमेशा से मेरे लिए रहे,
तब भी जब 'मैं' और 'तुम',
'हम' नहीं थे
या शायद उस से कुछ 'कम' भी नहीं थे
और मुझे ये एहसास हमेशा सालता रहा
कि मेरे शब्दों का सफ़र तन्हा सा क्यों है ?
शायद इन्हें भी हमेशा इंतज़ार रहा
कि कोई अपने शब्द मिलाकर
इन्हें जीवंत कर सके ...
कभी-कभी कहना भर काफी नहीं होता न
शब्दों को जीना ही उन्हें मुक़म्मल करता है !
#सुन_रहे_हो_न_तुम
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