हमारी यादों की गुल्लक

वक़्त गुज़रता गया, कभी नहीं रुका, तब भी नहीं जब हम अलग हो रहे थे, तब भी नहीं जब तुझे आख़िरी बार गले लगा कर , बिना पीछे मुड़े मैं आगे बढ़ गयी थी, अगर पीछे मुड़ कर तेरी आँखों में देख लिया होता तो जा नहीं पाती न ! पर क्या वाकई हम अलग हो पाए, वो जो लम्हे अब भी कहीं ज़िंदा हैं, कुछ तेरी संजो कर रखी तस्वीरों में, कुछ हमारी याददाश्त में, वो लम्हे हमें जुदा कहाँ होने देते हैं? हम तो मौजूद हैं एक दूसरे की धड़कनों में, ये दूरियां, ये दुनिया, ये मजबूरियां कैसे अलग कर पाएंगी हमें ? जीते जी भी नहीं और उसके बाद भी नहीं क्योंकि हम फिर लौटेंगे पूरी करने को 'हमारी अधूरी कहानी' ! 
             हाँ वही कहानी जिसकी शुरुआत कहीं हमारे तसव्वुर में न जाने कबसे थी, तेरे उस सुबह के ख़्वाब में, जब मैं लाल-पीली बॉर्डर वाली साड़ी में तुझे जगाने आती थी, तेरे न उठने पर तेरी उँगली को गरम चाय में डुबो देती थी और तू जाग कर मुझे खोजने लगता था अपने आस-पास ... मेरे ख़्वाब भी तो बेचैन किया करते थे मुझे जब उस पहचाने से स्पर्श को अपनी रूह तक महसूस किया करती थी, बिना ये जाने कि मैं कब मिल पाऊंगी अपने उस अजनबी हमसफ़र से, अपने बिछड़े मीत से, जिसका चेहरा तो नहीं देख पाई कभी मगर झट से पहचान गयी जब तुझसे पहली बार बात हुई, तेरी आवाज़ ने सांस रोक दी थी एक पल के लिए ... 
             याद है जब ऋषिकेश में गंगा किनारे गीली रेत पर मेरा नाम उकेर कर तूने तस्वीर भेजी थी मुझे, और मैं आंखों की नमी के पीछे से देर तक बस देखती रही अपना नाम, इतना खो गयी थी उस लम्हे में कि ये बताना ही भूल गयी तुझे कि पहली बार मुझे अपने नाम से प्यार हो गया .. पर फिर वो अधूरा सा लगा जब तक कि तेरे नाम का पहला अक्षर उसके आगे नहीं लग गया ! 
         हाँ नहीं रुका वक़्त बेशक़, गुज़रता ही गया पर हम भी बहुत शातिर हैं न, चुराते गए लम्हें हमारे साथ के, हमारी बेइन्तहा मोहब्बत में डूबे वो लम्हे आज भी महफ़ूज़ हैं हमारी उस मंजूषा में जो साझा गुल्लक है हमारी मधुर स्मृतियों की !

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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