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दास्तान-ए-इश्क़

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वो  दास्तान-ए-इश्क़  का हसीं सफ़र था,   वो लंबी काली रात की उजली सहर था! हर अहसास हर छुअन पर सिहरता जो, अनछुए मन पर उसका बेहद असर था! जिसे दवा समझे थे अपने दर्द की हम, वो बस बेहिसाब दर्द देने वाला कहर था! कहता था सागर है, समा लेगा बाहों में, रीता कर गया हमें, जो कहने को घर था! रंग भरने की बात करके बेरंग कर गया,  जो इश्क़ के गाढ़े लाल रंग में तरबतर था! तूफानों में भी डूबी नहीं थी कश्ती मगर, कहाँ जानती थी उसे तो लहरों से डर था! गुज़रा था अहसास तो देह से होकर भी, मगर रूह में भी हमारी उसका बसर था! 💖किरण

तुम थे तो ...

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कुछ लम्हे छूटे से, कुछ बातें अधूरी सी तेरे बिन जो गुज़री, तमाम रातें सूनी सी ख़लिश सी रहती है अब दिल में हर पल हर दिन है बेवजह, हर शाम बिखरी सी तन्हा ही अच्छे थे, न आस थी न उम्मीद अब हर पल, हर सु है फ़क़त बेचैनी सी तेरे आने से लेकर तेरे छोड़कर जाने तक पसरी हैं राह में बेजान ख़्वाहिशें टूटी सी बेशक़ तेरी ज़िन्दगी में शामिल नहीं मगर  माँगते हैं दुआ तुझे महसूस न हो कमी सी 💖किरण

हमारी यादों की गुल्लक

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वक़्त गुज़रता गया, कभी नहीं रुका, तब भी नहीं जब हम अलग हो रहे थे, तब भी नहीं जब तुझे आख़िरी बार गले लगा कर , बिना पीछे मुड़े मैं आगे बढ़ गयी थी, अगर पीछे मुड़ कर तेरी आँखों में देख लिया होता तो जा नहीं पाती न ! पर क्या वाकई हम अलग हो पाए, वो जो लम्हे अब भी कहीं ज़िंदा हैं, कुछ तेरी संजो कर रखी तस्वीरों में, कुछ हमारी याददाश्त में, वो लम्हे हमें जुदा कहाँ होने देते हैं? हम तो मौजूद हैं एक दूसरे की धड़कनों में, ये दूरियां, ये दुनिया, ये मजबूरियां कैसे अलग कर पाएंगी हमें ? जीते जी भी नहीं और उसके बाद भी नहीं क्योंकि हम फिर लौटेंगे पूरी करने को 'हमारी अधूरी कहानी' !               हाँ वही कहानी जिसकी शुरुआत कहीं हमारे तसव्वुर में न जाने कबसे थी, तेरे उस सुबह के ख़्वाब में, जब मैं लाल-पीली बॉर्डर वाली साड़ी में तुझे जगाने आती थी, तेरे न उठने पर तेरी उँगली को गरम चाय में डुबो देती थी और तू जाग कर मुझे खोजने लगता था अपने आस-पास ... मेरे ख़्वाब भी तो बेचैन किया करते थे मुझे जब उस पहचाने से स्पर्श को अपनी रूह तक महसूस किया करती थी, बिना ये जाने कि मैं कब म...

तेरे-मेरे ख़्वाब

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कभी-कभी लगता है मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई कि तुझे तेरे ख़्वाबों से मिलवाना चाहा, तेरी काबिलियत से तुझे रूबरू करवाया .. न ये ख़्वाब देखता न इसके टूटने का दर्द होता ! मुझसे अनजाने ही सही गुनाह हो गया, तुझे अनजाने ही सही दर्द दे बैठी, कभी न मिटने वाला दर्द जो वक़्त के साथ शायद अपने निशान तो मिटा देगा पर एक टीस तेरे मन के कौने में हमेशा चुभती रहेगी ..               तुझे यूँ खुद से अनजाना सा, अपनी ही खुशी से रूठा हुआ सा देखती हूँ तो बहुत रोता है मन, तेरी वो पुरानी खिलखिलाती तस्वीरें देख अनायास ही भीग जाती हैं आंखें, हाँ वही आंखें जो तेरे साथ तेरे ख़्वाब साझा देखा करती थीं !                 तेरी गुनाहगार हूँ मैं, क्या कभी मुक्ति मिलेगी मुझे इस बोझ से बाबू ? क्या कभी वो महकते ख़्वाब फिर देख पाऊंगी तेरी आँखों में झिलमिलाते हुए ? यकीन कर उस दिन मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कोई और नहीं होगा 💖 🎵🎶🎼 कबसे हैं आके रुके बादल इन आखों पे उस रोज़ रिहा होंगे जिस दिन तुम आओगे छा जाए ख़ामोशी दुनिया के सवालों पे सब दर्द ज़ुबां होंगे जिस...

इश्क़ की पैमाइश

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इश्क़ क़ामिल होता नहीं है फ़क़त ख़्वाहिश से, एक अहसास है बिखर जाता है आज़माइश से। एक पल में सिमट जाए, बुलबुला नहीं सतह का समंदर सी गहराई नपती नहीं किसी पैमाइश से।    💖🌹किरण

प्यार की तरह

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अपने ख़्यालों के परिंदों को हौले से छोड़कर आसमान में, दूर ...बहुत दूर जाते अक़्सर देखना धीरे-धीरे अल्फ़ाज़ में ढलकर फिर उन्हें लौटते भी देखना कविताओं, कहानियों की शक़्ल में !  यही से तो आगाज़ होगा उस सफ़र का जो तय करेगा हर उस रिश्ते का ताना-बाना जिसे गढ़ने तुम्हें भेजा गया दुनिया में यही वह सफ़र होगा  जो ख़ुद से ख़ुद के रिश्ते को अंजाम तक पहुंचा दे शायद... इस सफ़र के तज़ुर्बों पर फिर कई किताबें लिखी जाएंगी उनमें उभरे कुछ अल्फ़ाज़ होंगे  जो वज़्न में भले ही ज़ियादा हों पर सुनो, सिर्फ एक ही लफ्ज़ है, जो उन सारे बड़े और बोझिल से लगते अल्फ़ाज़ को सही मायने देता है  'प्यार' परिंदों की उड़ान भी परों के बिना संभव कहाँ ? हाँ वही 'पर' जो नाज़ुक और हल्के हों बिल्कुल 'प्यार' की तरह ! ❤️🌹 किरण

डायरी के सुर्ख़ पन्ने

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'तुम' महज़ एक अहसास नहीं हो ... लफ़्ज़ दर लफ़्ज़  लिखती हूँ तुम्हें अपने मन के कोरे पन्ने पर, तुम्हारी महक  ठंडी हवा सी सरसराती घुल जाती है मेरी साँसों में और पिघलने लगते हैं जज़्बात... अक़्सर उँगलियों में कंपन सा महसूस होता है जैसे स्पर्श किया हो तुम्हें, कितना शोर करती हैं तब धड़कनें भी जैसे तुमने छेड़े हो तार कहीं मेरे भीतर, ज़िद करने लगती हैं आँखें  तुम्हें एक झलक देखने की और मैं डूबती-उतरती सी  अक्सर उकेरती हूँ तुम्हारा अक़्स अपनी कल्पना में, अपनी आधी नींद के ख़्वाब में और जीती हूँ तुम्हें, सिर्फ़ तुम्हें, हाँ ...सिर्फ़ तुम्हें ! ❤️🌹किरण #डायरी_के_सुर्ख़_पन्ने