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इश्क़ की पैमाइश

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इश्क़ क़ामिल होता नहीं है फ़क़त ख़्वाहिश से, एक अहसास है बिखर जाता है आज़माइश से। एक पल में सिमट जाए, बुलबुला नहीं सतह का समंदर सी गहराई नपती नहीं किसी पैमाइश से।    💖🌹किरण

प्यार की तरह

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अपने ख़्यालों के परिंदों को हौले से छोड़कर आसमान में, दूर ...बहुत दूर जाते अक़्सर देखना धीरे-धीरे अल्फ़ाज़ में ढलकर फिर उन्हें लौटते भी देखना कविताओं, कहानियों की शक़्ल में !  यही से तो आगाज़ होगा उस सफ़र का जो तय करेगा हर उस रिश्ते का ताना-बाना जिसे गढ़ने तुम्हें भेजा गया दुनिया में यही वह सफ़र होगा  जो ख़ुद से ख़ुद के रिश्ते को अंजाम तक पहुंचा दे शायद... इस सफ़र के तज़ुर्बों पर फिर कई किताबें लिखी जाएंगी उनमें उभरे कुछ अल्फ़ाज़ होंगे  जो वज़्न में भले ही ज़ियादा हों पर सुनो, सिर्फ एक ही लफ्ज़ है, जो उन सारे बड़े और बोझिल से लगते अल्फ़ाज़ को सही मायने देता है  'प्यार' परिंदों की उड़ान भी परों के बिना संभव कहाँ ? हाँ वही 'पर' जो नाज़ुक और हल्के हों बिल्कुल 'प्यार' की तरह ! ❤️🌹 किरण

डायरी के सुर्ख़ पन्ने

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'तुम' महज़ एक अहसास नहीं हो ... लफ़्ज़ दर लफ़्ज़  लिखती हूँ तुम्हें अपने मन के कोरे पन्ने पर, तुम्हारी महक  ठंडी हवा सी सरसराती घुल जाती है मेरी साँसों में और पिघलने लगते हैं जज़्बात... अक़्सर उँगलियों में कंपन सा महसूस होता है जैसे स्पर्श किया हो तुम्हें, कितना शोर करती हैं तब धड़कनें भी जैसे तुमने छेड़े हो तार कहीं मेरे भीतर, ज़िद करने लगती हैं आँखें  तुम्हें एक झलक देखने की और मैं डूबती-उतरती सी  अक्सर उकेरती हूँ तुम्हारा अक़्स अपनी कल्पना में, अपनी आधी नींद के ख़्वाब में और जीती हूँ तुम्हें, सिर्फ़ तुम्हें, हाँ ...सिर्फ़ तुम्हें ! ❤️🌹किरण #डायरी_के_सुर्ख़_पन्ने

वही सपना, आधा सा अधूरा सा

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मीरा की गोद में सर रखकर लेटे उसी की डायरी के पन्ने पलटते उसने पूछा , "क्या कभी हमारी कहानी लिखोगी ?"  "उहूँ , क्यों लिखना है उसे जो हम जी रहे, तुम जीते हो मेरे आखर-आखर में और ये सिर्फ हमारे हैं। कहानियां, किस्सों में तो वो जीया करते हैं जो साथ नहीं होते, हम तो हमेशा साथ रहेंगे न ?" मीरा ने अपनी आंखों में सारी चाहत लिए कहा "हाँ हमेशा साथ रहेंगे और एक दिन हम कुकी और धनु को हमारी कहानी सुनाएंगे.." उसने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा । "अब ये कुकी और धनु कौन हैं ? नए दोस्त हैं तुम्हारे ? मुझे बताया नहीं कभी, कब बने, कहाँ मिले?" "अरे मेरी झल्ली ज़रा विराम लो ! ये नए दोस्त नहीं हमारी बेटी और बेटा हैं, होने वाले ..." , मीरा की हथेली चूमते हुए वो हँस पड़ा  "धत्त ! ब्याह नहीं हुआ और तुमने बच्चों के नाम तक रख लिए, वो भी बिना मुझसे सलाह किये .." ज़ोर से हँस दी मीरा  आसमान से एक बूंद आकर गिरी मीरा के चेहरे पर और फिर फिसल कर सीधे उसकी गोद में लेटे उसके चेहरे पर ... झट से उँगली में लेकर होंठो से लगा लिया उस मीठी बूंद को उसने । "ह...

वो बेवफ़ा रात और बरसात

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भीगी सी कल की रात  वो शबनमी सी बरसात भीनी सी खुशबू तेरे संग बुनी यादों की, हमारे सुर्ख़ जज़्बातों की, कहे-अनकहे वादों की, उमड़ते-घुमड़ते अहसासों की.... बैरन इस सुबह की सरगोशियों में फिर समेट रही हूँ हमेशा की तरह किर्चियाँ उन अधूरे से ख़्वाबों की... क्या शिक़वा कैसी शिक़ायत करूँ वो रात ही थी बेवफ़ा, जो सुबह होते ही दगा दे गयी ! ❤️🌹किरण

उलझे से तुम

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अक़्सर यहाँ-वहाँ उलझे से नज़र आते हो तुम! पर सुनो, कोई शिकायत नहीं है ये  तुम ऐसे ही पसंद हो मुझे। यूँ रेशा-रेशा तुम्हें सुलझाते, तुम्हीं में उलझ जाती हूँ अक़्सर और सुलझने की कोशिश में वो तुम्हारा करीब आ जाना मेरे मन को मेरे शब्दों में पढ़ लेना अहसासों के समंदर में डूबकर चंद लम्हों के लिए ही सही हमारा एक दूसरे में खो जाना .. बस यही कश्मकश तो साँसें देती है  हमारी बेलौस मुहब्बत को ! ❤️🌹 किरण

मगर कहा भी नहीं

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कुछ कहना था मगर कहा भी नहीं। बाकी मगर कुछ रहा भी नहीं। जो तुझ से थे वाबस्ता, उन लम्हों में तू रहा भी नहीं। हर शाम मल्हम सी लगी यूँ तो, जाने क्यों कोई ज़ख्म भरा भी नहीं। वो साझा रातें और हमारी बातें, वो बेचैन नींदें, ख़्वाबों की सौगातें, सब अपनी ही तो थी मगर जाने क्यों अपनी सी लगीं भी नहीं। तुझे मिलने से ज्यादा खोने का डर तारी रहा। तू मिला तो बेशक़ मुझे पर मेरा रहा भी नहीं। तू हवा है, तू ख़ुशबू है, तू हर सु है, साँसों में गूंजता रहा पर थमा भी नहीं। बंद आंखों से देखती रही तेरा अक्स खुली जो आंखें तू साथ रहा भी नहीं। 💖 किरण