उलझे से तुम

अक़्सर यहाँ-वहाँ उलझे से नज़र आते हो तुम!
पर सुनो,
कोई शिकायत नहीं है ये 
तुम ऐसे ही पसंद हो मुझे।
यूँ रेशा-रेशा तुम्हें सुलझाते,
तुम्हीं में उलझ जाती हूँ अक़्सर
और सुलझने की कोशिश में
वो तुम्हारा करीब आ जाना
मेरे मन को मेरे शब्दों में पढ़ लेना
अहसासों के समंदर में डूबकर
चंद लम्हों के लिए ही सही
हमारा एक दूसरे में खो जाना ..
बस यही कश्मकश तो साँसें देती है 
हमारी बेलौस मुहब्बत को !

❤️🌹 किरण

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