मगर कहा भी नहीं

कुछ कहना था मगर कहा भी नहीं।
बाकी मगर कुछ रहा भी नहीं।
जो तुझ से थे वाबस्ता,
उन लम्हों में तू रहा भी नहीं।
हर शाम मल्हम सी लगी यूँ तो,
जाने क्यों कोई ज़ख्म भरा भी नहीं।

वो साझा रातें और हमारी बातें,
वो बेचैन नींदें, ख़्वाबों की सौगातें,
सब अपनी ही तो थी मगर
जाने क्यों अपनी सी लगीं भी नहीं।

तुझे मिलने से ज्यादा खोने का डर तारी रहा।
तू मिला तो बेशक़ मुझे पर मेरा रहा भी नहीं।
तू हवा है, तू ख़ुशबू है, तू हर सु है,
साँसों में गूंजता रहा पर थमा भी नहीं।
बंद आंखों से देखती रही तेरा अक्स
खुली जो आंखें तू साथ रहा भी नहीं।

💖 किरण

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