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Showing posts from August, 2018

आईना

अक्सर चाहा आईना हो जाना ख़ुद से रूबरू होना अपने अक्स को सहज हो देखना और दिखाना मगर आईने अक्सर चुंधिया देते हैं जब किरणें टकराती हैं शायद किसी को आदत नहीं रही इतने उजाले की ती...

प्यार के परों पर ..

            मन बंजारा             जग अपना सारा             ढूंढे किसको ! अपने ख़्यालों के परिंदों को हौले से छोड़कर आसमान में, दूर ...बहुत दूर जाते अक़्सर देखना धीरे-धीरे अल्फ़ाज़ म...

कितने सवाल !

बचपन में अक्सर धर्म-कर्म की बातों से ऊब होती थी जब धर्म-गुरुओं की कथनी-करणी में फर्क़ दिखाई देता, ऐसे में सवाल उठाने पर अक्सर दादी कहतीं, "क्यों निंदा करते हो ? वे हमसे तो लाख दर्ज़...

ज़िंदा हैं हम

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हाँ पसंद है ये पुरानी इमारतें, ये किताबें हैं जिनमें आज भी दर्ज़ हैं कितने अनकहे किस्से, ये दस्तावेज़ हैं उन फैसलों के जिन्होंने कभी ज़िन्दगी को छुआ तो कभी मुक्ति को, इनके पत्थरों पर उकेरी गयीं मोहब्बत की इबारतें हर स्नेहिल स्पर्श से जीवंत हो उठती हैं, इनकी खामोशियों में गूँज है रूमानी नगमों की अधूरी चाहतों की  सिसकते इंतज़ार की फरियादों की दुआओं की, इनके चुप्पे कौनों में अक्सर धड़कते हैं बेचैन दिल, इनकी कोटरों में सुकून से रहते पंछियों की फड़फड़ाहट देती है सबूत इनके जीवंत होने का रोमांचित करता है हवा का हर वह झोंका जो इनके झरोखों और दरों-दरवाज़ों से गुज़रता हुआ सहला जाता है तन्हा दिलों को, जब भी कोई नन्हा क़दम अनजान दिशा में बढ़ता है या कोई मदहोश क़दम लड़खड़ा जाता है इनकी दीवारें बोल पड़ती हैं, "ज़रा ध्यान से !" इनके अवशेषों में अब भी है जीवन की रागिनी दो पल इनके साथ इनका होकर गुज़ारो तो सही ... 💝किरण

चंद लम्हे ही तो

तुमने ठीक कहा कि कुछ भी बेवज़ह नहीं होता, यूँ ही नहीं होता... कोई रास्ता दिखाई दे तो कहीं जाकर तो रुकेगा ही, भले ही मनचाही मंज़िल या पड़ाव न भी हो पर उस सफ़र का कोई तो मक़सद होगा, एक गलत मो...

एक शाम या कर्ज़

एक अरसे बाद तुमसे बात हुई तो जैसे ख़ुद से मुलाक़ात हुई, कुछ फ़ासले तय हुए, अपनी ही बातों के मायने समझ पायी। न जाने ये वक़्त हमारे बीच से कब गुज़रा, क्या तुमने देखा ? तुमने कहाँ मैंने छ...

डायरी से

पुरानी डायरी के उन बोसीदा पन्नों में एक वरक़ नया सा है अब भी, तमाम खारी बारिशें नहीं धो पायीं उस पर उकेरे अल्फ़ाज़, वही वरक़ तो गवाह रहा है ख़ुश्क रातों में जागती नम आंखों का हवाओं ...

रंगों सी तुम

"मुझे बस दो ही रंगों से लगाव था ...काला और सफ़ेद ... पर हाँ जब माँ ज़िद करती तो नीला शर्ट ले लिया करता मगर इनसे इतर कभी कोई रंग न लिया ।" उसने कहा मैंने तपाक से सवाल दाग दिया, "अच्छा ! मगर बा...

सहारा नहीं साथ

सुनो, सहारा मत बनो... हो सके तो साथ रहो.... न भी रह सको तो ये भ्रम ही रहने दो कि तुम हो या फिर कह दो कि नहीं हो । मैं बेल नहीं हूँ कि सहारा ढूंढू, न ही ख़्वाहिश है आसमाँ छूने की बस एक परिंदा ...

तुम ही आये थे न

अकेले रहने से कभी घबराहट नहीं हुई न ही किसी के साथ न होने की कमी खली.. शायद बचपन से तन्हाई पसंद रही हूँ, एक हद तक आज भी वैसी ही हूँ पर अब किसी से भी बात करने में झिझक नहीं होती । हाँ म...

एक उदास शाम

ढलती सांझ से अच्छा कोई वक़्त नहीं होता ज़िन्दगी के पन्ने पलटने के लिए ... अपना किया अच्छा-बुरा, सही-गलत परखने के लिए ।        याद है बचपन की वे गलियां और बनती बिगड़ती दोस्ती, हर दिन द...

रात की चादर

कुछ बातें दिन की भागमभाग में नहीं रात की नीरवता में ही समझ आती हैं इसीलिए बेसब्री से इंतज़ार करती हूं दिन के गुज़रने और रात के ठहरने का। रात की सियाही जाने कितने ऊष्ण रंग सोख ल...