सहारा नहीं साथ

सुनो, सहारा मत बनो... हो सके तो साथ रहो.... न भी रह सको तो ये भ्रम ही रहने दो कि तुम हो या फिर कह दो कि नहीं हो । मैं बेल नहीं हूँ कि सहारा ढूंढू, न ही ख़्वाहिश है आसमाँ छूने की
बस एक परिंदा हूँ, पर खोले प्रतीक्षारत हूँ..... हवा के संग उन्मुक्त विचरने को । तुम्हें जाने कब और क्यों लगने लगी प्रतिद्वंद्वी जबकि मेरी प्रतिस्पर्धा तो स्वयं मुझसे ही रही हरदम, एक बेहतर 'स्व' की चाह रही जब भी आईना बनके कोई क्षण  ठहरा और मैं पीछे मुड़कर तलाशने लगी वजह मेरे होने की ! अनगिनत प्रश्न अब नहीं बांधकर चलती अपनी पीठ पर, बस कुछ मधुर स्मृतियां, कुछ कड़वे अनुभव काफ़ी हैं ...'स्मृतियां' प्राणवायु है जब कभी ऊर्जा न्यून हो जाए और 'अनुभव' राह भटकने से बचाने को लगाए गए बोर्ड 'प्रवेश वर्जित' या 'एकल मार्ग' !

#सुन_रहे_हो_न_तुम

©विनीता किरण

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