आईना

अक्सर चाहा आईना हो जाना
ख़ुद से रूबरू होना
अपने अक्स को सहज हो देखना और दिखाना
मगर आईने अक्सर चुंधिया देते हैं
जब किरणें टकराती हैं
शायद किसी को आदत नहीं रही इतने उजाले की
तीरगी ढक जो देती है कितने ही ऐब..
आख़िर अपने ऐब ढूंढने के लिए आईना कौन देखता है?
सभी तो देखना चाहते हैं उस मद्धिम पीली रोशनी में अपना धुला-धुला अक्स
शायद इसीलिए ढक दिया करते हैं आईना,
जब भी उजली धूप भर जाती है कमरे में !

💕किरण

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