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Showing posts from May, 2018

मनाली डायरीज़

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यात्रा संस्मरण : मनाली डायरीज़        कहते हैं अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलाने में जुट जाती है.........सचमुच जब ठान लो तो सब संभव है और राहें स्वयं स्वागत करती हैं । लगभग 15 वर्ष पहले जब मनाली गयी थी परिवार के साथ तो मोहब्बत हो गयी थी मनाली की खूबसूरत हरी-भरी वादियों और बर्फ़ से ढके ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से... वहाँ के बाशिंदों की सादगी और अनगिनत मीठी-मीठी यादों से लबरेज़ मन हमेशा से एक आरज़ू पाले रहा कि किसी दिन फिर लौटूं उन हसीन कुदरती नजारों के बीच |             गत वर्ष अर्थात 18 मई को स्कूल के समय की सखी सारिका का व्हात्सप्प पर मैसेज आया, मनाली का प्रोग्राम बना 10 जून से पहले, सुनते ही जैसे रोमांच सा छा गया और मन बेताब हो उठा | आनन-फानन में दो ही दिन में यात्रा की योजना बनी, रेल टिकट, वो भी गर्मी की छुट्टियों में ! ऐसे में जयपुर से चंडीगढ़ के 23 मई के जाने और 31 मई के वापसी के कन्फर्म टिकट मिलना जैसे सचमुच कुदरत का ही ...

गाढ़ा लाल इश्क़

वह 5-6 साल की सफेद झालर वाली फ्रॉक पहने लड़की  मोम के रंगों से उस दिन उकेर रही थी अपने पापा के छोड़े आधे भरे कागज़ों पर कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएं ... वही ऊँचे-नीचे पहाड़ जिन्हें आधा भूरा, आधा ...

Love-magic

When love whispers softly It weaves a magic around A whole new world emerges within A world full of light and colours And life becomes a visual delight Shhhh.. can you hear this soft slow music playing in the air ? I know you can ... Just as i can We step and swirl falling in each other's arms and sway with the beats forever and ever...... -Kiran

नीम ख़ामोशी

इन दिनों सर्द हैं हवाएं, जम से गए हैं अल्फ़ाज़ हाँ भीतर कुछ अधजमे से एहसास अब भी जिंदा हैं.... बेतहाशा शोर करते हैं वो ज़र्द पत्ते, जिन्हें ढक दिया है बर्फ ने मगर ये शोर भी तो दफ़्न है ...

ख़्वाब

शब-ए-गुज़िश्ता में फिर इक ख़्वाब महका, मेरे हर ख़्वाब की तरह ये भी तुमसे ही वाबस्ता रहा, हाँ माना कि याद रहती नहीं हर बारीकी मुझे सुब्ह होने के बाद पर वो भीनी सी महक, वो ख़ुशनुमा एहस...

सवाल

"अगर वह ख़ुद नहीं कमाती तो क्या वह आत्मनिर्भर नहीं ? क्या इतना काफी नहीं कि वह सम्पूर्ण परिवार की धुरी है और सभी सदस्य उस पर निर्भर हैं ? फिर क्या वजह है कि उसे आत्मसम्मान से जीने ...

तुम्हारी परी

"काश मैं भी अभी छत पर आ पाती... कितनी मस्त हवा चल रही है !" "हैं ! अब तुम्हें कैसे पता चला मैं छत पर आया हूँ ?" उसने हैरानी से पूछा "तुम्हारे कदमों की आहट से ..." उसने मुस्कुराते हुए कहा , "जब तु...

वो बंद खिड़की

एक खिड़की जो जाने कब से बंद रही, जान बूझ कर या बेपरवाही में... भूल गए थे कि उसने कितने ही ताज़ी हवा के झोंकों को, चाँदनी की रेशमी ठंडक को, पीछे वाले घर में हँसते-खिलखिलाते मोगरे के फ...

तपिश

भीषण तपन के बाद आने वाली हल्की फुहारें अक़्सर राहत कम, बेचैनी अधिक छोड़ जाती हैं, शायद उकसाती हैं भीतर की उस तपन को जो जाने कब से ज़ब्त थी भीतर के गर्भ-गृह में ...हाँ जाने क्या नाम दे...

बारिशें और टीन शेड

बारिशें तो हमेशा से पसंद थीं मगर जैसे एक ख़ास ज़ायका सा जुड़ गया अब ... नमी सोख कर हवा में इत्र सा घोलती प्यासी मिट्टी तब भी लुभाती थी मन को और ऐसा लगता अपने भीतर ही उतार लूँ सारी महक ...

दो क़दम ज़मीं

पंखों से नाज़ुक और हल्के ख़्वाब कब लेते हैं इजाज़त आंखों में समाने की ...बस ले उड़ते है मन को अपने साथ और दूर बहुत दूर तक जाने के बाद फिर एक दिन एहसास होता है कि लौट जाने का समय हो चला ध...

बता कर जाना

तुमने कहा था जब भी जाओ बता कर जाना, या मेरी हो जाना पूरी तरह या मुझे अलविदा कह कर जाना ... मैं कमज़ोर नहीं खुद को संभाल सकता हूँ बस कभी झूठ मत कहना मुझसे कि तुम्हें मुझसे प्यार है । अ...