ख़्वाब
शब-ए-गुज़िश्ता में
फिर इक ख़्वाब महका,
मेरे हर ख़्वाब की तरह
ये भी तुमसे ही वाबस्ता रहा,
हाँ माना कि याद रहती नहीं हर बारीकी मुझे
सुब्ह होने के बाद
पर वो भीनी सी महक,
वो ख़ुशनुमा एहसास,
वो हल्की सी छुअन
वो हसीं लम्हात
सभी तो पहचाने से हैं
जैसे तुमसे जुड़ी हर वो बात
जो मैं याद नहीं रखती
पर कभी भूलती भी नहीं ...
ख़्वाब में ही सही
कुछ पल के लिए ही सही
ज़िन्दगी सचमुच मुस्कुराई थी
तुम्हारे दिए गुलाब की तरह !
-किरण
*शब-ए-गुज़िश्ता : पिछली रात
**वाबस्ता : जुड़े होना
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