गाढ़ा लाल इश्क़
वह 5-6 साल की सफेद झालर वाली फ्रॉक पहने लड़की मोम के रंगों से उस दिन उकेर रही थी अपने पापा के छोड़े आधे भरे कागज़ों पर कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएं ... वही ऊँचे-नीचे पहाड़ जिन्हें आधा भूरा, आधा हरा और ऊपर से सफ़ेद रंग देकर मन ही मन ख़ुश होती जैसे खींच लायी हो दूर खिड़की से दिखते उन पहाड़ों को अपने छोटे से कमरे में ... बड़े होकर जाना कि न वह कमरा उसका था न वह घर न ही उस कमरे में इकट्ठी की हुई वे सारी गैरजरूरी चीजें जो जाने क्यों उसे अपनी सी लगती थीं । आख़िर जरूरत का प्यार करना कब सीखा उसने, उसने तो उन पहाड़ों सा प्यार करना सीखा था जो बस देखने भर से बांध लेते थे मन बिना किसी बंधन के ... उसके कमरे से दिखने वाले पहाड़ों पर कहीं भी वह सफ़ेद बर्फ़ का शॉल नहीं था पर जाने कब और कैसे उसके हाथ ओढ़ाने लगे थे वह रुई सी मरमरी शॉल उन ऊबड़ खाबड़ पहाड़ों को । शायद उसने उन चट्टानी शरीर वाले पहाड़ों में भरा ढेर सारा प्यार तभी महसूस लिया था और उसी कोमलता को नर्म बर्फ़ की ठंडक में ढालकर लपेट लिया अपने चारों ओर इस तरह कि मई-जून में चलने वाली लू भी उसके मन को तपा नहीं पाती थी।
पहाड़ों से ये प्यार कब गाढ़े लाल इश्क़ में ढलता गया, जान ही नहीं पायी पर उस दिन धड़कने जैसे तूफानी हो गयी थीं जब पहली बार अपनी कल्पना के उन बर्फ़ीले, रूमानी पहाड़ों को अपनी नज़र के दायरे में पाया। दौड़ कर उन के आगोश में खो जाना चाहती थी और भर लेना चाहती थी उन्हें अपनी आंखों में, बसा लेना चाहती थी अपने भीतर के उस अतृप्त कोने में । वह 5-6 साल की लड़की अपने इश्क़ को धीरे-धीरे हल्का करती आयी थी थोड़ा-थोड़ा अब तक के सफ़र में हर उस पड़ाव पर जहाँ वज़्न कुछ ज्यादा लगा आख़िर बहुत सा वज़्न उन रस्मों, रिवाज़ों, रिश्तों से जुड़े फ़र्ज़ का भी तो लद चुका था उसके कोमल कंधों पर मगर अचानक जैसे किसी जादू से फिर उड़ कर लौट आईं वे सुर्ख लाल किरचियाँ जिन्हें रास्ते की धूल ने मटिया दिया था मगर परतों के नीचे अब भी ताज़ा था उसका गाढ़ा इश्क़, हिलौरे लेने लगा था कुछ भीतर और इस बार वेग उस चंचल और उन्मुक्त पहाड़ी झरने सा था जो पहाड़ों के इश्क़ से जन्मा और चट्टानों के खुरदुरे स्पर्श से रोमांचित होता हुआ नदी सा शांत भले ही हो जाये पर उससे पहले अपने इश्क़ की निशानियां हर बढ़ते क़दम पर रोपता हुआ बहता है । सुनो, उन लहरों में अब भी गूंजता है उसका वह पहला प्रेम-गीत जो अपने प्रिय के लिए रचा था उन मोम के रंगों से उन आधे भरे आधे खाली सफ़ेद पन्नों पर ....
#सुन_रहे_हो_न_तुम
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