तुम्हारे बाद
मेरी दहलीज़ से होकर बहारें जब गुज़रती है यहाँ क्या धूप, क्या सावन, हवाएँ भी बरसती हैं हमें पूछो क्या होता है, बिना दिल के जिए जाना बहुत आई-गई यादें, मगर इस बार तुम ही आना 🎶🎵 गाने के बोल जैसे बरस रहे थे सावन की बूंदों की तरह पर ये सावन फिर भी सूखा ही गुज़रा ... जब तपिश हो धरती के भीतर तो सूख ही जाती हैं बरसातें .. यूँ भी अब कहाँ है वो सुकून , वो सौंधी ख़ुशबू , वो भीगे अहसास .. सब बदल गया , न तय समय पर मौसम आते हैं न जाते हैं , कभी बह जाते हैं बादल हवाओं संग तो कभी भूल जाते हैं कि आगे भी बढ़ना था..... धूप जलाती भी नहीं अब और न छांव सुकून देती , बर्फीली ठंड में याद ही नहीं आता वो पसंदीदा ओवरकोट और किसी दिन हल्की ठंड में निकाल लाती हूँ अम्बार ऊनी कपड़ों का ... वो टीन पर बूंदों की छमछम बहुत कर्कश लगती है, कानों में उँगली ठूस कर कहीं कोने में दुबक जाने को जी करता है बस । अगर नहीं बदला है कुछ तो वो है तुम्हारे नाम ख़त लिखना, न लिखूं तो आंखें बंद होने से इंकार कर देती हैं, रात अपना आँचल भी नहीं देती कि तुम्हारी बाहें स...