ग़ज़ल
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बिखरते है संवरते है दिलों में फिर भी पलते हैं ये ख़्वाबों के परिंदे है उड़ाने रोज़ भरते हैं संभाले है मरासिम ये बहुत अरमान से लेकिन दुखाते हैं बहुत दिल को कभी जब वार करते हैं कभी वादे किये तुमने भुला बैठे हो पल भर में भरम ये जो वफ़ा का है न टूटे अब यूँ डरते हैं धड़कने से अगर दिल के यकीं हो जाए जीने का संभालो दिल तुम्हें दे के चलो हम आज मरते हैं ख़ुशी के चार पल काफ़ी गमों के जब अँधेरे हो ‘ किरण ’ इक आस की चमके हज़ारों दीप जलते हैं ©विनिता सुराना 'किरण'