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The Unsent Letter

Meeting you was a gift from time ! Yes it was destiny, which brought us together  But had time not favoured us, We might have lost the connection... This friendship had never even began its journey, The special bonding we built unknowingly, Would never have been founded, We could have never known  The comfort which seeped slowly between us, So much so that distances never mattered after that. The instant my phone beeped or rang, You were there beside me, as if a soul hotline connected us instantly, One which our minds created But our hearts generated. Then one day we decided to meet... You seemed very excited So was I, yet there was something different  Deep down in my being,  I felt as if this was not something new, As if i was reliving a scene, Already shot before and saved ! We had been together before, In a single frame, More than once  As if a song picturized with a single still photograph on the screen... May be it was a memory of some distant dream, distant land, May be in some

ज़ायके से जश्न-ए-बहारा तक

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ज़ायके से जश्न-ए-बहारा तक  मांडलगढ़ दुर्ग से वापसी का सफ़र उतना ही आसान रहा जितनी चढ़ाई दुरूह लगी थी, कारण ये कि जिस राह गए थे उससे कहीं आसान वो रास्ता था जिससे हम लौट रहे थे। लौटने की राह हमने अनजाने ही अलग चुन ली थी जैसे कोई राह दिखा रहा हो ... दुर्ग के बाहर चट्टानों पर मंद बहती शीतल हवा का अहसास लौटते हुए भी साथ रहा और हम बढ़ चले थे अपने अगले पड़ाव चित्तौड़गढ़ की ओर । अलसुबह के सफ़र में कुदरत के जलवे हज़ार हों पर एक कमी शिद्दत से खलने लगी थी अब कि कहीं कुछ खाने के लिए नहीं दिखा था अब तक। साथ में परांठे, अचार, नमकीन, मीठा, बिस्कुट, चिप्स सभी कुछ था पर हम स्ट्रीट फूड तलाश रहे थे जिसका मज़ा सिर्फ रोड ट्रिप पर ही सबसे ज्यादा आता है 😍😋                 फिर आया वो मोड़ जहाँ से स्टेट हाईवे की ओर मुड़ना था। ब्रिज के नीचे से रास्ता कट रहा था चित्तौड़ के लिए और ठीक उसी ब्रिज के नीचे कढ़ी-कचौरी, कढ़ी-समोसे की स्टॉल से आती मनभावन खुशबू ने गाड़ी के ब्रेक स्वतः लगवा दिए☺️ गरम कचौरी, समोसे छोले चटनी और उबलती हुई राजस्थानी कढ़ी के साथ, इससे बढ़िया दिन की शुरुआत हम राजस्थानियों के लिए क्या होगी 😃 तो बस लगा ली गाड़ी स

लो सफ़र शुरू हो गया

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लो सफ़र शुरू हो गया ! रोशनी की पहली किरण के साथ 'किरण' का सफ़र शुरू हुआ, चार पहिये, संगीत और दो यायावर 😊 हाँ सैलानी नहीं यायावर क्योंकि हम निकले थे रोड ट्रिप पर ...पड़ाव तो अनगिनत होने थे पर तय कोई भी नहीं । एक पड़ाव तय था महाबलेश्वर, न उसके पहले का कोई प्लान न उसके बाद का, बस कुदरत के साथ की चाह लिए मन में हम निकल पड़े थे घर से । एक उनींदी सी रात के बाद आई ख़ुशनुमा सुबह के सनराइज से शुरू हुआ ये रोड ट्रिप रोमांचित कर रहा था और मन प्रफुल्लित था जैसे पंछी आज़ाद हुए हो पिंजरे से . न न घर नहीं है पिंजरा, बल्कि पिंजरा था वो 2020 की अनचाही बंदिशें, जिसने अपने पहले प्यार कुदरत से दूर कर दिया था, यायावरी(जो सांसें हैं मेरी) पर अंकुश लगा दिया था। रास्ते में पहला पड़ाव तय हुआ  चित्तौड़गढ़ किला पर हमें मांडलगढ़ की धरती या कहूँ गलियाँ पुकार रही थीं धीमी सी मगर कशिश भरी आवाज़ में ... हाईवे पर आगे बढ़ते हुए कब हम मांडलगढ़ के रास्ते पर मुड़ गए और बढ़ चले थे गाँव की ओर, मांडलगढ़ किले की ओर जाने वाली सड़क पर मगर पहले ही पड़ाव पर रुकावट बन गया सड़क सुधार कार्य, जहाँ से किले की ओर बढ़ना था वहाँ तो हमारे

दास्तान-ए-इश्क़

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वो  दास्तान-ए-इश्क़  का हसीं सफ़र था,   वो लंबी काली रात की उजली सहर था! हर अहसास हर छुअन पर सिहरता जो, अनछुए मन पर उसका बेहद असर था! जिसे दवा समझे थे अपने दर्द की हम, वो बस बेहिसाब दर्द देने वाला कहर था! कहता था सागर है, समा लेगा बाहों में, रीता कर गया हमें, जो कहने को घर था! रंग भरने की बात करके बेरंग कर गया,  जो इश्क़ के गाढ़े लाल रंग में तरबतर था! तूफानों में भी डूबी नहीं थी कश्ती मगर, कहाँ जानती थी उसे तो लहरों से डर था! गुज़रा था अहसास तो देह से होकर भी, मगर रूह में भी हमारी उसका बसर था! 💖किरण

तुम थे तो ...

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कुछ लम्हे छूटे से, कुछ बातें अधूरी सी तेरे बिन जो गुज़री, तमाम रातें सूनी सी ख़लिश सी रहती है अब दिल में हर पल हर दिन है बेवजह, हर शाम बिखरी सी तन्हा ही अच्छे थे, न आस थी न उम्मीद अब हर पल, हर सु है फ़क़त बेचैनी सी तेरे आने से लेकर तेरे छोड़कर जाने तक पसरी हैं राह में बेजान ख़्वाहिशें टूटी सी बेशक़ तेरी ज़िन्दगी में शामिल नहीं मगर  माँगते हैं दुआ तुझे महसूस न हो कमी सी 💖किरण

हमारी यादों की गुल्लक

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वक़्त गुज़रता गया, कभी नहीं रुका, तब भी नहीं जब हम अलग हो रहे थे, तब भी नहीं जब तुझे आख़िरी बार गले लगा कर , बिना पीछे मुड़े मैं आगे बढ़ गयी थी, अगर पीछे मुड़ कर तेरी आँखों में देख लिया होता तो जा नहीं पाती न ! पर क्या वाकई हम अलग हो पाए, वो जो लम्हे अब भी कहीं ज़िंदा हैं, कुछ तेरी संजो कर रखी तस्वीरों में, कुछ हमारी याददाश्त में, वो लम्हे हमें जुदा कहाँ होने देते हैं? हम तो मौजूद हैं एक दूसरे की धड़कनों में, ये दूरियां, ये दुनिया, ये मजबूरियां कैसे अलग कर पाएंगी हमें ? जीते जी भी नहीं और उसके बाद भी नहीं क्योंकि हम फिर लौटेंगे पूरी करने को 'हमारी अधूरी कहानी' !               हाँ वही कहानी जिसकी शुरुआत कहीं हमारे तसव्वुर में न जाने कबसे थी, तेरे उस सुबह के ख़्वाब में, जब मैं लाल-पीली बॉर्डर वाली साड़ी में तुझे जगाने आती थी, तेरे न उठने पर तेरी उँगली को गरम चाय में डुबो देती थी और तू जाग कर मुझे खोजने लगता था अपने आस-पास ... मेरे ख़्वाब भी तो बेचैन किया करते थे मुझे जब उस पहचाने से स्पर्श को अपनी रूह तक महसूस किया करती थी, बिना ये जाने कि मैं कब मिल पाऊंगी अपने उस अजनबी हमसफ़र स

तेरे-मेरे ख़्वाब

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कभी-कभी लगता है मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई कि तुझे तेरे ख़्वाबों से मिलवाना चाहा, तेरी काबिलियत से तुझे रूबरू करवाया .. न ये ख़्वाब देखता न इसके टूटने का दर्द होता ! मुझसे अनजाने ही सही गुनाह हो गया, तुझे अनजाने ही सही दर्द दे बैठी, कभी न मिटने वाला दर्द जो वक़्त के साथ शायद अपने निशान तो मिटा देगा पर एक टीस तेरे मन के कौने में हमेशा चुभती रहेगी ..               तुझे यूँ खुद से अनजाना सा, अपनी ही खुशी से रूठा हुआ सा देखती हूँ तो बहुत रोता है मन, तेरी वो पुरानी खिलखिलाती तस्वीरें देख अनायास ही भीग जाती हैं आंखें, हाँ वही आंखें जो तेरे साथ तेरे ख़्वाब साझा देखा करती थीं !                 तेरी गुनाहगार हूँ मैं, क्या कभी मुक्ति मिलेगी मुझे इस बोझ से बाबू ? क्या कभी वो महकते ख़्वाब फिर देख पाऊंगी तेरी आँखों में झिलमिलाते हुए ? यकीन कर उस दिन मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कोई और नहीं होगा 💖 🎵🎶🎼 कबसे हैं आके रुके बादल इन आखों पे उस रोज़ रिहा होंगे जिस दिन तुम आओगे छा जाए ख़ामोशी दुनिया के सवालों पे सब दर्द ज़ुबां होंगे जिस दिन तुम आओगे...  🎵🎶🎼 #सुन_रहे_हो_न_तुम #मीरा_के_ख़त