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Showing posts from May, 2017

बिरादरी (कहानी)

बिरादरी हर रोज की तरह शाम को बच्चों को कंपाउंड के पार्क में लेकर आई रागिनी ने अभी पहला ही चक्कर लगाना शुरू किया था कि सामने से आती हुई शोभना को देख कदम ठिठक गए | क्या ये सचमुच व...

क्या चले ही जाओगे ?

कैसे सोच लिया, तुम जाओगे ... और चले ही जाओगे ? मैं तुम्हें नहीं रोक पाऊँगी, तुम्हारा जाना नियति है पर फिर भी कहो तो... कैसे जाओगे ? नहीं जानते क्या, मैं आज भी वही हूँ जो इत्र की खाली शी...

अंधेरा

सुनो, कभी-कभी चाँद का न आना चाँदनी का रूठ जाना तारों का छुप जाना बेहद सुकून देता है .... हम दोनों नहीं देख पाते एक दूसरे के चेहरे पर उभर आयीं वो महीन सी सिलवटें जिन्हें वक़्त छोड़ ग...

पगली

"पगली है क्या, कितना हँसती है !" कभी टोक दिया करती थी उसे माँ, खिलखिलाकर हँसती और फिर बरसने लगते थे आंखों से मोती । हाँ ... आज भी हँसती है वो बात-बात पर, बरसते हैं अब भी मोती पर इन दिनो...

आसान नहीं होता पंछी होना !

आसान नहीं होता अपने ही बनाये कफ़स को तोड़ना ! और किसी दिन तोड़ भी दिया तो क्या आसान होगा, अपने निढाल पंखों को झाड़कर उड़ जाना खुले आसमान में ? पंछी होने का ख़्वाब सुखद होगा पर पंछी हो...