अंधेरा

सुनो,
कभी-कभी चाँद का न आना
चाँदनी का रूठ जाना
तारों का छुप जाना
बेहद सुकून देता है ....

हम दोनों नहीं देख पाते
एक दूसरे के चेहरे पर उभर आयीं
वो महीन सी सिलवटें
जिन्हें वक़्त छोड़ गया खेल-खेल में ...
अंधेरे की काली सतह पर
खूब चमकती हैं हमारी आंखें
वो चमक फिर लुभा लेती है
कुछ उचटे से मन को शायद,
हमारे आसपास ओझल हो जाती है
हर वो चीज़
जो ध्यान भटका सकती थी
एक दूसरे से
...
उस एक पल में,
हाँ बस उसी पल में
हट जाता है हर पर्दा,
मिट जाते हैं सभी फ़ासले
तुम्हारे-मेरे बीच के ।

©Vinita Surana Kiran

Comments

Popular posts from this blog

Happiness

Kahte hai….

Dil Chahta Hai !