एक कतरा ज़मीन
और ...... कुछ और .... फिर कुछ और .... ऊँची उड़ान ली ख्वाहिशों ने ! ज़मीन से नाता टूटा और एक दिन आसमां भी छोटा लगने लगा ... होश तो तब आया जब परों ने साथ छोड़ दिया .... मुट्ठी भर आसमां भी अपना न हुआ ... अश्कों में भीगी हैं पर कांधा भी नसीब न हुआ .... उफ्फ ! काश एक कतरा ज़मीन अपने नाम कर ली होती .... थक कर लौट आने के लिए !!!! © विनिता सुराना किरण