दो क्षणिकाएं


कितनी गहराई तक
बस चुके हो तुम
मेरे तसव्वुर में,
हैरान हूँ
हर इक कलाम मेरा
डूबते-उतरते
तुम्हीं पर
जा ठहरता है | (1)

शातिर हैं यादें तुम्हारी,
खामोश लहरों सी चुपके से
छूती है मन को मेरे
और छेड़ जाती है
साहिल पर बैठी  
ख्वाहिशें मेरी | (2)

©विनिता सुराना किरण 

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