किरदार
कभी हँसता हूँ, कभी रोता हूँ मैं मगर न हँसी सच्ची, न रोना सच्चा बस एक किरदार जीता हूँ मैं...... दिखाता हूँ तमाशे, करता हूँ ठिठोली , मगर रिसते है आँसू मेरे अंतस में सिसकता हैं दर्द बीमार माँ का सेवानिवृत्त पिता का हँसते हुए चेहरों में दिखता है मायूस चेहरा पत्नी का तब मैं और ज़ोर से हँसता हूँ और रोक लेता हूँ वो दरिया जो लरज़ता है पलकों के भीतर बजती हैं तालियाँ तो मिलता है सुकून क्योंकि यही तालियाँ तो परोसेंगी रोटी भूखे बच्चों के आगे बस यही किरदार प्रतिदिन जीता हूँ मैं मसखरा हूँ मैं ! ©विनिता सुराना ‘किरण’