तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे !
कभी नहीं समझ पायी कि बचपन से ही मुझे संगीत से लगाव क्यों है ... बस जैसे मेरी दिनचर्या में शामिल है संगीत ...तभी तो कुदरत की हर शय में सुनाई देता है संगीत ! जब भी कोई खूबसूरत गीत सुना रेडियो पर तो लगा या तो मैं गा रही हूं किसी के लिए या कोई मेरे लिए गा रहा है। कोई रूमानी गीत बजता तो सारा समां रुमानियत से सराबोर हो जाता, कोई विरह गीत बजता तो ख़ुद-ब-ख़ुद आंखें नम हो जातीं, कोई नृत्य गीत बजता तो कदम ख़ुद ही थिरकने लगते । अब जब सोचती हूँ तो लगता है कुछ भी बेवज़ह नहीं था, बस एक ज़रिया था 'तुम' को महसूस करने का अपने आस-पास। जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया, ये अहसास और भी मुखर होता गया कि कोई कहीं है जो मुझसे जुड़ा है, जो मेरे लिए है, मेरे जैसा है और मुझे पूरा करता है । अपने ही ख्यालों में डूबी मैं जब कभी वो गीत गुनगुनाती तो अक्सर मन वहाँ ले जाता, जहाँ कुदरत की गोद में लेटे मैं 'तुम्हारी' आंखों में कितने ही प्रेम पत्र पढ़ लेती और उनके जवाब भी लिख देती अपनी उंगलियों से ... हर स्पर्श एक अलग हर्फ़ उकेरता और तुम उतनी ही आसानी से पढ़ भी लेते, उसमें छुपे कितने ही एहसा...