दस्तक न देना तुम ख़्वाब
तुम जो बदले, बदल गए मौसम।
हम थे तन्हा, वही रहे हरदम।
वो अब्र जो तेरे आने का पैगाम लाते थे कभी, आज उदास से लगे मुझे, रो भी देते शायद पर तुझ सा सब्र साथ लाये थे... शायद किसी की यादों का बोझ लिए भटक रहे थे ज़र्द से आसमान की शुष्क ज़मी पर ! हाँ बोझिल सी लगती हैं वो यादें जिन्हें आधे-अधूरे मन से गढ़ तो लेते हैं पर जज़्ब नहीं करते दिल में ...
जाने क्यों मुझे देख कर उतर आए और बोले, "सुनो कोई ख़्वाब मत बोना वरना सोख लेगा ये नमी भी तुम्हारी और फिर उम्र भर खरोचेगा यादों की ख़ुश्की से, रीते से दिल पर ये खरोंचे बेचैनी और चीरण के सिवाय कुछ नहीं देंगी ।"
बेहद सर्द ये शाम तुम्हारे जतन से लगाए अलाव की आंच से पिघला करती थी कभी, आज बहुत तन्हा सी लगी ... शायद एक और रतजगे का आभास था इसे भी , बेचैन करवटों और ठिठुरन से पगा । आज की रात में नहीं घुलेगी तुम्हारी गर्म सांसें और जम जाएंगे सारे ख़्वाब जो भूले से भी दस्तक देंगे इसकी दहलीज़ पर ... नादाँ होते हैं न ये ख़्वाब, कहाँ समझते हैं कि हर ख़्वाब नहीं महकता यादों में , कि यादें भी बोझिल हुआ करती हैं , है न ?
#सुन_रहे_हो_न_तुम
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