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Showing posts from September, 2019

साझा मुस्कान

कभी एक कहानी पढ़ी थी चींटी की जो बार-बार दीवार पर चढ़ने की कोशिश करती और फिसल कर गिर जाती पर उसने हार नहीं मानी और बार-बार प्रयास करती रही और फिर तक़दीर ने हार मान ली और उसकी जीत हुई...

ख़ामोशी

बहुत शोर करती हैं खुशियां शायद इसीलिए चुभ जाती हैं, खलने लगती हैं एक समय और एक सीमा के पश्चात मेरे आसपास सभी को यहाँ तक कि मेरे अपनों को भी हमें अपने अलावा किसी और का शोर कब पस...

एक चिट्ठी माँ के नाम

माँ, आज न आपका जन्मदिन है, न पुण्यतिथि, न ही मातृ दिवस, आपकी याद यूँ भी किसी विशेष दिन की मोहताज नहीं ... मेरे मन के पन्नों पर जाने कितनी अप्रेषित चिट्ठियां लिखी हैं आपके नाम की पर ...

सन्नाटा और शोर

अचकचा कर उठ बैठती हूँ अक्सर और देखती हूँ अपने बिस्तर पर बेतरतीब पसरी हुई सलवटों को ... आधी रात की गहरी नींद में जैसे पुकारा हो किसी ने ... पहचानी सी फिर भी अनजानी सी वो आवाज़ फिर रह-र...