ख़ामोशी

बहुत शोर करती हैं खुशियां
शायद इसीलिए चुभ जाती हैं,
खलने लगती हैं एक समय और एक सीमा के पश्चात
मेरे आसपास सभी को
यहाँ तक कि मेरे अपनों को भी
हमें अपने अलावा किसी और का शोर कब पसंद आया?
मुझे उदासियाँ भाने लगी हैं,
बहुत ख़ामोशी से आती हैं
और चुपके से बिना शोर किये
अपनी जगह बना लेती हैं
किसी को ऐतराज़ नहीं होता
क्योंकि कोई शोर नहीं होता ...

तुम अपने छोर पर
मैं अपने छोर पर
दोनों अपनी-अपनी उदासी ओढ़े बैठे हैं
हमारे बीच ये चुप्पी का पर्दा है
कुछ दिखाई नहीं देता
हाँ मगर पहचान लेती हूं
तुम्हारी ख़ामोशी को
और उसमें लिपटी उदासी को भी

कितना सुकून है न,
अब कहीं कोई शोर नहीं होता !

किरण

Comments

Popular posts from this blog

Happiness

Chap 28 HIS RETURN…..

Kahte hai….