Manali Diaries # 7
कुछ दृश्य और मन पर उनका प्रभाव केवल और केवल महसूस किया जा सकता है, न केवल शब्दों की पहुँच से परे होता है बल्कि अच्छे से अच्छा कैमरा भी उसे समाहित नहीं कर पाता ... कुछ ऐसा ही अनुभव था 'पाराशर' का ! अब भी वो चल दृश्य मन पर अंकित है ... भुंतर से 50 km का सफर तय करके मनाली के विपरीत दिशा में सबसे ऊंची चोटियों में से एक पर खड़े हम, दूर सामने पसरे मनाली के हरे-भरे पहाड़ और उनके पीछे से झांकती बर्फीली चोटियाँ, और बीच में गहरी घाटियाँ हरे-भरे चीड़ के वृक्षों से लदी और चमकीली हरी घास का फर्श सा बिछा हुआ... पाराशर में कदम रखते ही बादलों ने स्वागत किया अपनी गर्जना से मानो कह रहे हों "स्वागतम सुस्वागतम" साथ ही ऊपर आकाशीय कैमरा बार-बार फ्लैश चमका रहा था जैसे वो भी कैद कर लेना चाहता हो वो लम्हा जब हम एकाकार हो रहे थे कुदरत से ! तपती हुई धूप में आरंभ हुआ सफर यूँ मुक़म्मल होगा, सोच से भी परे था।
50 km पहाड़ी सड़क पर सफर , ऊंचाई की ओर, अद्भुत था वो अनुभव जब कभी-कभी नीचे की गहराई की ओर देखना भी अजीब सी सिहरन दे रहा था पर मन रोमांचित भी था । जहाँ टैक्सी रुकी वहाँ का दृश्य यक़ीनन मनमोहक था पर जब डेढ़ फुट चौड़ी पगडंडी पर लगभग 500 मीटर चल कर चोटी पर पहुँचे तो एक बारगी साँस थम सी गयी सामने का नज़ारा देखकर ! चारों ओर हरित चादर सी बिछी थी, 100 मीटर नीचे की ओर ढलान पर चले तो पाराशर झील नज़र आई, स्वच्छ निर्मल जल और एक कोने में तैरता घास का टापू, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह अपनी जगह बदलता रहता है । झील के पानी को स्पर्श की इजाज़त नहीं है, चारों तरफ बाड़बंदी से सुरक्षित रखा गया है। आगे चलते हुए चढ़ाई पर जाकर हम चोटी के एक छोर पर जा बैठे जहाँ से उस पार के हिम शिखरों का अद्भुत नज़ारा था और नीचे की गहरी घाटी का भी। अभी हम साथ लाये आलू के परांठे खाने ही लगे थे कि रिमझिम अमृत की बूंदे बरसने लगीं। मन तो बहुत था भीगने का पर साथ कोई ड्रेस न होने से मन को मनाना पड़ा और जल्दी से मंदिर के साथ बने शेड में आकर बैठ गए। इस बीच तेजी से तापमान गिरने लगा था और पहली बार लगा हम हिल स्टेशन पर हैं । घास पर पड़ रही बूँदे कुछ और निखार रही थीं कुदरती खूबसूरती को और मन शीतल हवा के साथ बहने लगा था ।
सचमुच अलौकिक अनुभव था जिसकी अनुभूति आज भी साथ है पर शायद पूर्ण वर्णन शब्दों में कभी नहीं कर पाऊँगी ❤ कुछ-कुछ समझ आ रहा था क्यों ऋषि पाराशर ने ये स्थान चुना होगा तपस्या के लिए ? जब कुछ क्षण में हम सम्मोहित हो गए और प्रकृति में घुलमिल गए तो एक तपस्वी के लिए तो निश्चित ही प्रभाव कई गुना रहा होगा ।
ऋषि पाराशर आश्रम में बने कमरे यात्रियों के लिए उपलब्ध हैं पर रात्रि में तापमान काफी कम रहने से शायद ही यात्री वहाँ रुकते होंगे और खाने का भी कोई विशेष इंतज़ाम नहीं दिखा, अलबत्ता नीचे गाँव के कुछ लोग वहाँ चाय, बिस्कुट, मैगी, मठरी आदि उपलब्ध करा देते हैं। मंदिर में रखी कोई भी मूर्ति से ज्यादा मुझे हमेशा वहाँ का स्वच्छ वातावरण ही आकर्षित करता है और उसी का असर होता है कि मन स्वतः शांत हो जाता है ।
रिमझिम से ख़ुशनुमा हुए मौसम ने ऐसा बांधा कि जाने कब 3 बज गए और पाराशर को अलविदा कहने का समय करीब आ गया। कदम लौट रहे थे पर मन वहीं कहीं बस जाना चाहता था ...
#Kiran
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