Manali Diaries # 11
मिली है गोद कुदरत की, पले दुश्वारियों में हम।
सफ़र आसाँ नहीं तो क्या, रहें हम मौज में हरदम।
ऊँचे-ऊँचे दुर्गम पहाड़ों पर बने छोटे-छोटे कच्चे छप्पर वाले घर, जहाँ तक आने-जाने का मार्ग ही हम जैसे शहरी और आरामपसंद लोगों की सांस फुला दे, जब उन्हीं रास्तों पर छोटे-छोटे बच्चों को मीलों का सफ़र हर दिन तय करके स्कूल आते-जाते देखा तो एकबारगी लगा कितना मुश्क़िल है जीवन इन पहाड़ों में बसे लोगों का ! हम जिसे ट्रेकिंग कहकर एडवेंचर ट्रिप के लिए जाते और बहुत खुश होते अपनी उपलब्धि पर, वही उनके लिए रोज की वाकिंग है 😊😊
Naggar के समीप बसे गाँव में घूमते और स्थानीय निवासियों की दिनचर्या देखते समझ आया, "जितनी कम ख़्वाहिशें, उतनी ही अधिक खुशियाँ" । भौतिक सुविधाओं से दूर, प्रकृति के करीब, हर पहाड़ी के चेहरे पर सदाबहार मुस्कुराहट, मिलने-बोलने में सहज भोलापन और मदद करने को सदा तत्पर... अपने ही खेत और आँगन में उगे धान, फल-सब्जियों और गाय के शुद्ध दूध-घी ने जहाँ आत्म-निर्भरता दी है, वहीं सुकून और संतुष्टि भी । घाटियों में बने स्कूल, कॉलेज देख बेहद खुशी हुई कि शिक्षा के प्रति भी जागरूक हैं और साथ ही परिवार नियोजन भी शहरों से कहीं बेहतर ... बच्चों के खिलखिलाते चेहरे और कंधे पर स्कूली बस्ते, बाल-श्रम नहीं भोला बचपन मुस्कुराता हुआ ।
बस एक ही ख़्याल बार-बार आता रहा... "काश मैं भी कभी इन पहाड़ों में आकर बस जाऊँ" 😊
पिछली बार जब मनाली गयी थी तब सर्दियाँ थी और लगातार बर्फबारी भी हुई थी दो दिनों तक, रात को पारा शून्य से कई डिग्री नीचे चला जाता था और सुबह चारों तरफ बर्फ की चादर से ढके देखे थे घर, वही समय सैलानियों को भाता है पर जब उस कड़ाके की ठंड में अलसुबह अपने होटल के बाहर घर में किसी को कपड़े धोते और सुखाते देखा था तब सिहरन सी दौड़ गयी थी। इसलिए भली-भाँति जानती हूँ कितना कठिन होता है पहाड़ों पर जीवन , फिर भी जाने क्यों ये ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मुझे हमेशा अपने से लगते हैं ... "कुछ तो है तुझसे राब्ता !" ❤❤❤
#Kiran
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