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Showing posts from August, 2016

हाँ ...सिर्फ़ तुम्हें !

'तुम', महज़ एक एहसास हो? लफ़्ज़ दर लफ़्ज़ लिखती हूँ तुम्हें अपने मन के कोरे पन्ने पर, तुम्हारी महक ठंडी हवा सी सरसराती घुल जाती है मेरी साँसों में और पिघलने लगते हैं जज़्बात... अक़्सर उ...

तुम्हारा ख़त

आज फिर लिखा है न एक ख़त तुमने इन बूँदों पर मेरे नाम, तभी तो थिरक रही हैं ये बूँदें फिर दे रही हैं पैग़ाम तुम्हारे आने का, © विनीता सुराणा किरण

उलझन

अक़्सर उलझे से नज़र आते हो पर सुनो, तुम ऐसे ही पसंद हो मुझे.. यूँ रेशा-रेशा तुम्हें सुलझाते, तुम्हीं में उलझ जाती हूँ अक़्सर और सुलझने की कोशिश में वो तुम्हारा करीब आ जाना पल भर को...

राह

हाँ तुम ढूँढो वज़ह दूर रहने की ! मैं ढूँढती रहूँगी, हर वो राह जो तुम तक जाए, क्या ही अच्छा हो ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाए और उस पार जब मिलो तो रास्ते ही नहीं क़दमों के निशाँ भी मिट जाएँ......

क्यूँ पूछते हो

क्यूँ पूछते हो ऐसे सवाल जिनका जवाब मैं दे न पाऊँ या शायद तुम ही न जानना चाहो, कुछ एहसास बस जिये जाते हैं, शब्दों में जकड़े नहीं जाते ! ©विनीता सुराणा 'किरण'

कुछ कहा भी नहीं

कुछ कहा भी नहीं बाकी मगर कुछ रहा भी नहीं जो तुझ से थे वाबस्ता उन लम्हों में तू रहा भी नहीं हर शाम मल्हम सी लगी जाने क्यों फिर कोई ज़ख्म भरा ही नहीं रातों की वो बातें ख़्वाबों की ...

धरणी की कहानी (भाग 3)

सहमी , सुबकती रश्मि को जैसे तैसे घर लेकर पहुँची धरणी तो ये देखकर हैरान रह गयी कि घर में जमघट लगा है लोगों का । सामने देखा तो संतोष बैठा गाँव वालों के साथ बतिया रहा था। धरणी को ...

धरणी ( कहानी) भाग 2

दो दिन रुक कर मदन और सुरभि शहर लौट गएँ। घर में सब यथावत चलने लगा, बस धरणी का जीवन सूना हो गया था। मदन के साथ न रहने पर भी उसकी प्रतीक्षा रहती थी और मन में एक आस और कुछ सपने , अब वे ...