वैलेंटाइन
तुम्हीं ने तो मुक़र्रर किया था
ये दिन
उस ख़ास मुलाक़ात के लिए
और वो पहला तोहफ़ा ...
आज भी महक उठता है
रंग फिर से चटख उठते हैं
मेरा स्पर्श पाकर
ये बरसों का फ़ासला अपनी जगह
और तुम्हारा एहसास ..
तब कहाँ जानती थी
साल दर साल
एक रस्म की तरह निभाऊंगी,
हाँ आज फ़िर लूँगी
दो तोहफ़े ...
एक तुम्हारे लिए
और एक मेरे लिए
तुम्हारी तरफ़ से !
किसी ने कहा
इस दिन को अब
वैलेंटाइन डे कहते हैं,
तो चलो आज फ़िर पूछ लेती हूँ
बनोगे मेरे वैलेंटाइन !
©विनीता सुराना 'किरण'
Comments