चाँदनी
कल
चाँदनी की शादी है यानि इस घर में उसके जीवन का एक अध्याय कल पूर्ण हो जायेगा और मेरे
परिवार में एक नया सदस्य जुड़ जायेगा, परन्तु जाने क्यूँ अब भी मुझे मेरा परिवार
अधूरा लगता है | आँखों में नींद नहीं है और याद आ रहा है आज से करीब 24 वर्ष पहले
रोहन की पहली बरसी का दिन, जो उसका जन्मदिन भी हुआ करता था ..... अपने जन्मदिन पर
ही स्कूल से लौटते हुए स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण हम असमय अपने इकलौते
बेटे को खो बैठे थे | सुख हो या दुःख समय कभी नहीं ठहरता, तब भी नहीं ठहरा था, घर
और जीवन दोनों सूने हो गए थे और दुर्भाग्य ये कि मैं दोबारा माँ नहीं बन सकती थी |
रोहन की बरसी और जन्मदिन को मैं और रोनित एक चाइल्ड होम गए थे कुछ मिठाइयाँ और फल
लेकर, प्रशासक ने सभी बच्चों को बाहर बगीचे में ही बुला लिया था | एक अजीब सी ख़ुशी
उस दिन पहली बार महसूस हुई रोहन के जाने के बाद, जब उन बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट
और अपने प्रति स्नेह दिखाई दिया | सभी बच्चे लगभग 2 से 8 वर्ष की उम्र के थे वहाँ,
इसीलिए उनकी आँखों में कृतज्ञता नहीं बस प्यार था, निश्छल और निर्मल | तभी मेरी
नज़र सबसे पीछे खड़ी एक छोटी सी लड़की पर पड़ी, लगभग दो-ढाई
वर्ष की, उसके
हाथ में एक कपडे की बनी गुडिया थी, चेहरे पर उदासी और गालों पर सूखे आंसुओं के
निशान, एक मिठाई का टुकड़ा और सेब लेकर उसके पास गयी तो देखा गुडिया का एक हाथ टूटा
हुआ है और वो निरर्थक प्रयास कर रही थी उसे किसी तरह जोड़ने का | उसके मासूम चेहरे
की उदासी कही भीतर तक बेचैन कर गयी मुझे ...कुछ कह पाती इससे पहले ही वो पलट कर
धीरे-धीरे वहाँ से चली गयी और मैं बुत बनी बस उसे जाते हुए देखती रही | बची हुई
मिठाई और फल देकर हम वापस घर आ गए पर मैं चाहकर भी वो उदास और मासूम चेहरा भूल
नहीं पायी | रोनित को उसके बारे में बताया और उससे मिलने जाने की इच्छा जताई पर
रोनित तैयार नहीं हुए | उनके अनुसार किसी अनजानी बच्ची के प्रति मेरा ऐसा मोह सही
नहीं था, पर जैसे–तैसे उन्हें राज़ी किया कि बस एक बार उसे मिलकर आ जाऊँगी | पर वो
मुलाक़ात आखिरी नहीं थी, उस मासूम ने फिर से मेरे भीतर सोयी ममता जगा दी थी और एक
दिन मैं जिद कर बैठी उसे गोद लेने के लिए | रोनित मेरी जिद के आगे हार गए और
चाँदनी घर आ गयी पर रोनित उसे मन से कभी नहीं अपना सके, शायद रोहन की जगह किसी और
को नहीं दे सके खासकर उस लड़की को जो उनका खून नहीं थी |
चाँदनी हमारे सूने घर की रौनक बन गयी
और उसका बचपन असमय मुरझाने से बच गया | रोनित ने कभी किसी चीज़ के लिए मुझे रोका
नहीं चाहे शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाखिले की बात हो या चाँदनी की छोटी से
छोटी ख्वाहिश पूरा करने की पर उन्होंने एक निश्चित दूरी हमेशा बनाए रखी उससे | बड़ी
होती चाँदनी महसूस करने लगी थी पर उसने कभी कुछ नहीं कहा अपनी जुबान से और उसकी
आँखों में मैंने हमेशा रोनित के लिए प्यार देखा | स्कूल से कॉलेज और फिर MBA, ऑन
कैंपस प्लेसमेंट में एक अच्छे पैकेज से शुरुआत सब जैसे एक खूबसूरत ख्वाब की तरह था
और कल वही प्यारी सी बिटिया और मेरी सबसे अच्छी सहेली एक नए रिश्ते में जुड़ने जा
रही थी अपनी पसंद के हमसफ़र के साथ | जाने कब आँख लग गयी और अलार्म से आँख खुली तो
सुबह हो चुकी थी | दिन शादी की रस्मों में बीत गया और रोनित ने फेरों सहित मेरे
साथ हर रस्म अदा की | विदाई का समय हो चला था, सभी रिश्तेदार और मित्र भीगी आँखों
से चाँदनी को विदा कर रहे थे, पर चाँदनी की आँखें बस रोनित को तलाश रहीं थी |
फेरों के तुरंत बाद से रोनित मुझे भी नहीं दिखे थे पर अब चाँदनी की खोजती आँखें
मुझे अजीब सी बेचैनी दे रही थी | क्या आज भी रोनित उसे प्यार से आशीर्वाद नहीं
देंगे? यही सवाल परेशान कर रहा था बार-बार | शायद मैं जानती थी वो कहाँ होंगे,
मेरे कदम रोहन के कमरे की ओर बढ़ चले थे, जो आज भी उसकी यादों से भरा था | परन्तु
बीच रास्ते ही मेरे कदम ठिठक गए क्योंकि रोनित रोहन के नहीं चाँदनी के कमरे में
उसके पलंग पर बैठे थे, हाथों में उसकी वही कपडे वाली गुडिया लिए, जिसे आज तक
चाँदनी ने संभाल कर रखा था | रोनित के कंधे पर हाथ रखा तो बच्चो की तरह मुझसे लिपट
गए और आँखों से आंसुओं की धारा बह रही थी | पहली बार रोनित की ये उदासी, ये आँसू
मुझे सुकून दे रहे थे | चाँदनी को माँ तो 24 साल पहले मिल गयी थी पर आज अपनी
ज़िन्दगी के एक अहम मोड़ पर उसने अपने पिता को पा लिया था | दुल्हन के सुर्ख लाल
जोड़े में दरवाज़े के पास खड़ी चाँदनी दौड़कर आई और रोनित और मुझसे लिपट गयी | आज मेरा
परिवार पूरा हो गया था |
©विनिता सुराना 'किरण'
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