शबनम (मुक्तक)


सूखे फूल मुहब्बत के, दिल सहरा है |
चश्मे पुरनम छोड़ो, दरिया गहरा है |
बेपरवा दिखते रंजो-गम से यूँ तो,
क़तरा शबनम बंद पलक पे ठहरा है |
©विनिता सुराना 'किरण'

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