आँगन (कहानी)
घड़ी की सूइयाँ रात के 9:00 बजा रही थी | मंथन अपने ऑफिस से लौटा ही था, मधु ने तुरंत मेज पर खाना लगाया और बेटे को आवाज़ लगायी खाने के लिए | उसकी तरफ से कोई प्रत्युत्तर न पा कर मधु उसके कमरे की ओर चली गयी बुलाने, दरवाज़े पर पहुंची तो उसके ठहाके ने सहसा कदम रोक दिए उसके .....धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी तो मंथन की तल्ख सी आवाज़ आई “क्या है मम्मी?” “खाना लग गया बेटा, सब ठंडा हो जाएगा”, मधु बोली| भड़ाक से दरवाज़ा खुला और मंथन भुनभुनाता हुआ बाहर आया, “आपको कितनी बार बोला है खाना लगा कर रख दीजिये, मैं ले लूँगा ...थोडा सा समय अपने लिए मिलता है उसमें भी आप दखल देती हो.... मेरी अपनी भी कोई ज़िन्दगी है” “पर बेटे मैं तो खाने के लिए ही ....” मधु अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पायी उससे पहले वह थाली उठा कर अपने कमरे में चला गया और दरवाज़ा बंद कर लिया | कल रात से ही बेडरूम की ट्यूब लाइट फ्यूज पड़ी हुई थी, सोचा था मंथन आएगा तो बदल देगा| पति भी काम से बाहर गए हुए थे और उसका हाथ ट्यूब लाइट तक पहुँच नहीं पा रहा था, पर अब मंथन से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पायी वह और चुपचाप कमरे की ओर चल पड़ी, ...