ग़ज़ल
समझे थे राजदां वो हमारा रकीब था
छलता रहा सदा ही लगा जो करीब था
नादाँ थे मांगी उनसे ख़ुशी की जो दो घडी
समझा जिसे इलाही वो दिल का गरीब था
माना जिसे अजीज़ वफ़ा ही सदा किये
वो राह में ही छोड़ गया जो हबीब था
सोचा नहीं था ख्वाब बिखर जायेंगे सभी
दामन जला गया वो कहर भी अजीब था
कामिल न हो सकी है कभी ख्वाहिशें मेरी,
पाया ‘किरण’ वही है, जो अपना नसीब था
-विनिता सुराना 'किरण'
छलता रहा सदा ही लगा जो करीब था
नादाँ थे मांगी उनसे ख़ुशी की जो दो घडी
समझा जिसे इलाही वो दिल का गरीब था
माना जिसे अजीज़ वफ़ा ही सदा किये
वो राह में ही छोड़ गया जो हबीब था
सोचा नहीं था ख्वाब बिखर जायेंगे सभी
दामन जला गया वो कहर भी अजीब था
कामिल न हो सकी है कभी ख्वाहिशें मेरी,
पाया ‘किरण’ वही है, जो अपना नसीब था
-विनिता सुराना 'किरण'
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