Posts

कत्लगाह

Image
वो अँधेरी गलियाँ जिनसे गुज़रकर कम नहीं होते अँधेरे बढ़ते ही जाते हैं..... धुआँ छोड़ती भट्टियाँ जो कभी सांस नहीं लेती एक पल को भी..... एक महीन सी रेखा धूप की चुपके से झांकती है बंद खिडकियों के ऊपर बने छोटे से रोशनदान से ......   एक तीखी सी सीटी चीर जाती है तभी गहरे बोझिल सन्नाटे को और अचानक शुरू होती है भारी हलचल..... बिजली की गति से दौड़ने लगती हैं छोटी-छोटी दुबली-पतली आकृतियाँ नन्हे हाथों में थामे उबलता हुआ पिघला सीसा भट्टियों से सांचों तक ताकि ढल सकें रंगबिरंगी खूबसूरत चूड़ियाँ...... एक अलग सा संसार है इन चूड़ियों का अलग उन सूखे मुरझाएं चेहरों से खुरदरी हो चुकी हथेलियों से कमज़ोर पैरों से जो बिना रुके, थके चलते है रात-दिन पिघला सीसा लिए पात्र सांचों में पलटते पुनः भरने के लिए कभी कसके बंद किये होंठों से छूट जाती है दर्द की कराहें जब एक-दो बूँद छलक जाती है छाले पड़े हाथ-पैरों पर मगर रुकने की इजाजत नहीं देती वो गिद्ध सी आँखें जो निरंतर रखती है पहरा उन पर ...... इन अँधेरी भयानक काल कोठरियों में हर दिन घुटती है...

तुम नहीं आये

Image
लो समा गया एक और दिन शाम के आगोश में रेशमी गालों पर शाम के उभर आई है लाली हया की परिंदे भी लौट चले हैं अपने नीड़ की ओर तारों की बारात भी बस आने को है सज रहा है चाँद मिलने को रजनी से मिलेंगे बिछड़े मीत भी अपनी सजनी से पर तुम नहीं आये ..... कहा था न तुमने   मेरा इंतज़ार करना इससे पहले कि शाम के रंग घुले   रजनी की साँसों में और चुरा ले चाँद उनको, मैं लौट आऊंगा, मेरे गीतों को होंठों से लगाकर अपनी धडकनों के सुर देना अपनी नर्म हथेली पर मेहंदी रचाना खूब सजना संवरना दुल्हन सी निखरना जरूर लौट आऊँगा मैं तुम्हारा श्रृंगार पूरा होने से पहले  पर तुम नहीं आये ..... कल कुछ तितलियाँ आई थी मिलने मेरे ख़्वाबों से छोड़ गयी कुछ रंग पिघले से जगा गयी मेरे ख़्वाबों को सोचा, जब तक तुम नहीं आते एक तस्वीर बना लूँ तुम्हारी कुछ यादें थी खामोश सी मिला कर रंगों में जिन्हें गाढे किये थे रंग   ताकि बह न जाए, लो कच्ची पक्की सी बन गयी एक तस्वीर तुम्हारी पर तुम नहीं आये ...... कब से पलकों में छिपाए बैठी हूँ तस्वीर तुम्हारी...

मुक्तक

Image

मुक्तक

Image

पञ्च चामर छंद

Image

पञ्च चामर छंद

Image

रेशम की डोरी

Image