तुम तुमसे ही लगे


          कदमों से भी तेज धड़कनें और उनसे भी तेज़ नज़रों से भीड़ को चीरती बढ़ी जा रही थी तुम्हारी ओर ... बेचैनी थी तुम्हें पहली बार देखने की और उधेड़बुन में उलझा हुआ था मन कि जाने क्या प्रतिक्रिया होगी हम दोनों की एक दूसरे को देख कर ... पहली मुलाकात आख़िरी होगी या पूरी होगी तलाश उस हमसफर की जिसे मन ने पहचाना था बिन देखे, बिन जाने ?

            दूर कोई पीठ किये खड़ा था और मन उछाल मार गले में आ अटका, सोचा पुकार लूं पर आवाज़ तो जैसे मन की गिरफ्त में बेबस सी ठिठक गयी और उंगलियां टच स्क्रीन पर हरकत में आयीं .. हेलो के साथ जो वो पलटा तो लगा एक बारगी वक़्त भी ठिठक गया 

"चैक कर रही थी मैं ही हूँ ?" , हँसते हुए बोला था तुमने और जाने क्या जवाब दिया मैंने याद नहीं बस इतना भर कह पायी "तुम्हारी तस्वीर तुम्हारे साथ इंसाफ नहीं करती.."
तुमने शरारत से एक आंख दबायी और मुस्कुरा दिए ।

इतने करीब बैठे थे हम पर जैसे कुछ इंच की दूरी भी हमारे घरों की 16 किलोमीटर की दूरी से बहुत ज्यादा थी, जिसे पाटने में पूरे 40 मिनट लगे थे मुझे उस भारी ट्रैफिक वाली सड़क पर ..
उस पल तुम्हें छू भर लेने की तलब इस क़दर थी कि हथेली खुद ही तुम्हारी हथेली से लिपट गयी थी । बेतहाशा पसीने में भीगी तुम्हारी हथेली जैसे आश्वस्त कर रही थी कि मेरा सदियों सा इंतज़ार अपनी मंज़िल पा गया था ...

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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