इश्किया


इश्क़ में डूबी नदी ने पूछा था, "तुम झरने से क्यों नहीं, आओ न पूरे वेग से और मिल जाओ न मुझमें ! सागर से हुए तो मेरा सफ़र कितना लंबा होगा....छूट जाऊंगी कितनी ही घाटियों में थोड़ी-थोड़ी, तुम तक पहुंचने में खो दूंगी अपनी चमक, घाट की मिट्टी के अंश लिपट गए तो तुम्हे परहेज़ तो न होगा मुझे आगोश में लेने में ?"

"झरने सा हुआ तो मिल जाऊंगा तुम्हे पर क्या ठहर पाओगी तुम कहीं या मुझे साथ बहा ले जाओगी और कहीं जो मैं छूट गया तुमसे तो कहाँ जाऊंगा ? मैं सागर ही ठीक हूँ न तुम समा जाना और मैं ठहराव दूंगा तुम्हें अपने आगोश में .. मुझमें जो खार है वही उजला देगा तुम्हें और प्रेममय हुए तो कहाँ रहेगा कुछ अधूरा ... जितना भी छूटोगी उससे कहीं ज्यादा भर देगा प्रेम ... बस रास्ता कोई हो तुम्हारी मंज़िल मैं रहूं !"

नदी अब भी सोच में है ... उसे तो आगाज़ से लेकर अंजाम तक बस उसी की ख़्वाहिश है तो झरना भी रहो न और सागर भी ... बोलो रहोगे न ? 

#सुन_रहे_हो_न_तुम


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