अधूरे से हम
अधूरे से तुम थे, अधूरे से हम थे
सब कुछ अधूरा ही तो है .. पूरा होना भी
न कोई एहसास पूरा
न कोई रिश्ता पूरा
हर कहीं गुंजाइश है कुछ और पूरा होने की
कुछ और पाने की
कुछ और खोने की
बिखरने की और सिमटने की
हर पल बदलता है कुछ और होने को
कभी अपने में सिमट जाते
तो कभी अनायास ही भीग जाती हैं पलकें किसी अनजाने के दर्द से
यही अधूरा होना तो ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है
तुम और मैं 'हम' हुए तब भी अधूरे ही रहे
तभी तो जुड़ पाए जाने कितने और एहसास
हमारे बीच उग आयी पूरी एक पौध रिश्तों की
हम भी कहाँ एक रिश्ते तक सीमित रहे
कितने किरदार बदले हैं इस सफ़र में
कभी अनजान हमसफ़र से दोस्त, मनमीत से प्रीत
कभी नादाँ ठिठोली से गंभीर विमर्श
तो कभी बेवजह की गलतफहमियां .....
अगर ये अधूरापन न होता तो क्या तलाशते अपने भीतर
न कोई ख़्वाहिश होती, न आरज़ू कुछ पाने की
न डर कुछ खोने का , न ख़ुशी कुछ खोकर पाने की
फिर क्या ख़ाक जीते हम !
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