गुल जो चहका करते हैं

अक्सर रुक कर देखा है
चलते-चलते राहों में 
गुल जो चहका करते हैं 
डाल-डाल की बाहों में।

इश्क़ जुनूँ है परों पे काबिज़
मंद हुलसती हवा की थिरकन।
सुनती हूँ दिल थामे अब भी
ज़मींदोज़ पत्तों की धड़कन।
सज़दे में झुकते हैं या फिर 
हैं अलमस्त पनाहों में।
गुल जो चहका करते हैं
डाल-डाल की बाहों में।

तुम संग हर इक रुत बासंती
तुम बिन हर मौसम है पतझड़
क्या गुल, क्या पत्ते, क्या बूटे
गीत तुम्हारे सभी हैं अनगढ़।
विरही हैं या हैं वैरागी,
सदियों से किसकी चाहों में।
गुल जो चहका करते हैं
डाल-डाल की बाहों में।
❤️ किरण

Comments

Popular posts from this blog

Happiness

Chap 28 HIS RETURN…..

Kahte hai….