साझा आसमाँ

साझा है उड़ान ख़्वाहिशों की, साझा हैं दर्द की फसल भी, कुछ साझा ख़्वाब भी उग आए हैं नज़र भर फैले इस टुकड़े पर ... यूँ तो नज़र और नज़रिए में सहज ही होता है फर्क़, रहा ही होगा लेकिन पाट दी गयी सब दूरियां एक ही पल में जब एक नज़र, हाँ गहरी नज़र हमारे बीच के आईने से आर-पार हुई ... तुम्हें देखना आईना देखना ही तो है !
      अक्सर असहमति से होकर स्वीकार्यता तक का सफ़र तय किया है हमने, फिर देर तक हँसे भी जब अलग से रास्तों पर गुज़र कर एक ही मोड़ पर आ मिले हम और देर तक, दूर तक ताकते रहे वो साझा आसमाँ !

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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