किस्सा-ए-इश्क़
चंद अल्फ़ाज़ में बयां हो वो किस्सा नहीं है इश्क़ ! 'तुम' से 'तुम' तक के सफ़र में जाने कितने अल्प विराम आए, कुछ तो अधूरा छूटा भी होगा कहीं क्योंकि तुम तो असीमित आकाश से हो और मैं एक पंछी सी .. ठहर जाना मेरी फ़ितरत भी, मेरी विवशता भी, मेरी जरूरत भी...
पर सुनो, यूं ही कहते रहना तुम, ये किस्सागोई आख़िरी उम्मीद है कि इश्क़ ज़िंदा है अभी !
💕किरण
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