तुम्हारा इंतज़ार है .. तुम पुकार लो

ये सफ़र इतना लम्बा क्यों है?
अक्सर इस सवाल में उलझ जाता है मन..
कदम दर कदम जाने कितने एहसासों से रूबरू होता,
कुछ अनकही बातें, कुछ आवारा सी ख़्वाहिशें, अक्सर, अनजाने ही जोड़ता,
हर अनदेखी, अनपरखी ठोकर पर गिरता-संभलता, जाने कितने सौपान छू आता,
सहर से सांझ तक, धूप से छांव तक, कितने रंग बदलती फ़ज़ा और हर रंग में ख़ुद को ढालता,
आधी-अधूरी नींद के मध्यांतर में अक्सर, ग़ैर मगर फिर भी अपनों से लगते सायों से घिरा रहता है मन ...

न वक़्त रुका, न उम्र ठहरी पर मन जाने क्यूँ यायावर सा भटकता हुआ भी बार-बार लौटता रहा उस सहरा में जहाँ कुछ गहरे निशान अब भी दबे हैं वक़्त की धूल से ढके हुए, अवशेष ही सही पर कहीं कुछ जड़ें अब भी दबी हैं, जो बरसों नमी से दूर होकर भी जाने कैसे ख़ुद को ज़मीं से अलग न कर पायीं ....

अक्सर ठिठक कर थम सा जाता है मन जब रेडियो पर हेमंत दा जाने कितनों के मन की टीस को स्वर देते हैं ...

ख़्वाब चुन रही है रात, बेक़रार है तुम्हारा इन्तज़ार है, तुम पुकार लो

💕 किरण
#सुन_रहे_हो_न_तुम

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