सहरा
न रुके क़दम,
न जुस्तजू ही कम हुई
फिर भी न जाने कहाँ छूट गए कुछ मुक़ाम
सहरा सी वीरानी,
वक़्त की रेत पर ये अल्पकालिक निशां,
उम्र की दहलीज़ पर एक उंगली बचपन की थामे
अक्सर सोचा करती हूँ ...
इन कच्चे से लम्हों के पार
क्या होगा कोई पड़ाव हरियाला सा
या जारी रहेगा ये अंतहीन भटकाव ?
एं ज़िन्दगी,
तेरी तलाश में
छोड़ आये पीछे कितने ही कारवां ..
कुछ ज्यादा की ख़्वाहिश भी नहीं
फ़क़त इक मुलाक़ात ही तो चाही थी तुझसे !
💕 किरण
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