तुम्हारा वाला 'प्रेम'
अब्र बेचैन से धीरे-धीरे सरकते जा रहे जैसे निकल जाना चाहते हों नज़र बचाकर बिन बरसे, हवा अनमनी सी आकर सहलाती तो है मगर वो मख़मली एहसास नदारद है... कुछ तो रडक रहा है मन में जैसे कोई फांस चुभी हो अनदेखी .. अनजानी सी पगडंडी से गुज़रते हुए अक्सर छूट जाती हैं कुछ निशानियाँ बे-ईरादा तो कुछ अनचाहे, अजनबी एहसास उलझ जाते हैं उड़ते दुपट्टे में । तुम्हारे-मेरे बीच से गुज़रा है वक़्त का एक बहुत लंबा कारवाँ, मेरे छोर से तुम्हारे छोर तक आते-आते वक़्त ने 20 साल खर्च कर दिए । अब उम्र का ये फ़ासला यूँ जड़ें जमा बैठा है मन में कि कभी संभव नहीं हुआ प्रेम का बीज अपने लिए जरूरी खाद-पानी-वायु ले पाता । खरपतवार सी उग आयी है, बंजर हो चली ज़मीन में नमी भी सतह पर ठहर जाती है तब तुम ही कहो कैसे कह दूं "हाँ मुझे भी इंतज़ार था, मैं भी महसूस करना चाहती थी डूब कर, तुम्हारा वाला "प्रेम" !"
"तुमसे बात करके क्या नींद आती है ... कोई ख़्वाब नहीं, कोई बेचैनी नहीं, कोई सवाल भी नहीं ... जैसे आख़िरी परीक्षा का पर्चा हल करके आने वाली सुकून की नींद...", मुस्कुराते हुए तुम्हारा कहना एक अजीब सी ख़ुशी देता है, अच्छा लगता है कि तुम्हें कुछ लम्हें सुकून के और एक गहरी नींद तो हासिल हुई । तुम कहते हो आसान नहीं अपने एहसासों को शब्द देना पर मुझे लगता है जिन्हें पूर्णतया शब्दों में वयक्त किया जा सके, वे एहसास खालीपन छोड़ जाते हैं अपने पीछे। क्या यही वज्ह काफी नहीं कि कुछ कहा न जाए बस मन भर के जीया जाए। आख़िर में वही जाना-पहचाना, असंख्य बार दोहराया ब्रह्म-वाक्य "कल हो न हो !"
आज, अभी ये पल ... बस यही एक सच है, इसे मुक्त रहने दो हर बंधन से, क्या जाने अगला पल हमारा हो न हो ....चाहे प्रेम हो न हो पर कोई शिक़वा-गिला तो न होगा ! ये दो छोर कभी मिलें न मिलें पर ये फ़ासला भी बेहद सुखद है जब तक 'तुम' उस पार नज़र आते हो 💕
#सुन_रहे_हो_न_तुम
©विनीता किरण
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