कन्या पूजन
कभी भेदती नज़रों से, कभी कसैली ज़ुबाँ से, कभी अश्लील भावों से, कभी बदनीयत हाथों से प्रतिदिन निर्वस्त्र होती हैं 'कन्याएँ' !
कभी सुरक्षा के भ्रम में, कभी संस्कारों की आड़ में, कभी परिवार की आन, बान और शान के नाम पर, प्रतिबंधित होती हैं 'कन्याएँ' !
कभी परिचित, कभी अपरिचित तो कभी रिश्तों की गरिमा को तार-तार करते उनके अपने ही सरंक्षक हाथों द्वारा शोषित होती हैं 'कन्याएँ' !
तमाम वर्जनाओं, दलीलों और उलाहनों से घायल परंतु निरंतर सांस लेती, जीवित होने का भ्रम लिए, शिक्षा के लिए संघर्षरत, युवा होती ......जब कभी अधिकारों की बात करें, ऊँची ज़रा अपनी आवाज़ करें, तो कभी गालियों, कभी बंदूकों, कभी लाठियों से प्रताड़ित होती हैं कन्याएँ !
कभी ईश्वर प्रदत्त सर्वाधिक सुरक्षित समझी गयी माँ की कोख में भी तो अब सुरक्षित नहीं ये, पाषाण हृदय और बेरहम हाथों द्वारा कभी कूड़े के ढेर में बिलबिलाती, कभी श्वानों का ग्रास बनती, प्रतिपल कुचल दी जाती हैं कितनी ही कन्याएँ !
हाँ मगर साल में दो बार हर नवरात्र के समापन पर अब भी देवी सदृश पूजी जाती हैं कन्याएँ !
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#किरण
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