साँझ के धुँधलके में

हौले से जब उतरती है साँझ,
कुछ कतरनें रौशनी की लिए,
नीले आसमाँ पर टंगा दिखाई देता है
आधी बुझी कंदील सा
आधा चाँद,
दूर कसमसाता वो तन्हा सितारा,
तब पार्क की खाली बेंच पर बैठे,
अक्सर वो लम्हे जीया करती हूँ,
जो ख़ुशबू से घुले हैं,
मेरी डायरी के पन्नों में !
©विनीता सुराणा किरण

Comments

Popular posts from this blog

Happiness

Kahte hai….

Dil Chahta Hai !