क़ता

तिमिर हर ओर जब दीपों से हारे।
वो घर सूना मगर किसको पुकारे।
जलाओ इक दिया उनके लिए भी,
निगहबां है जो सरहद के हमारे ।
©विनीता सुराणा किरण

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