ये कुछ लम्हे
आँखों से नींद की
बेवफ़ाई
और उस पर
ख़्वाबों की आवारगी,
कल जो तुमने थपथपाया
तो ख़ुद को अज़नबी सा पाया,
फिर भी जाने क्यों दिल पर
अब भी है,
उसी मुलाक़ात का
धुँधला सा साया,
शब सारी गुज़री
बस कुछ लम्हे ठहर गएँ....
सुनो,
बहुत भारी हैं ये कुछ लम्हे,
उन सारी रातों पर !
©विनीता सुराणा 'किरण'
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